⚖️ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा संदेश: सोशल मीडिया पर लगाए नियम लगाम ।। अभिव्यक्ति की आज़ादी असीम नहीं, जीवन और गरिमा पहले


⚖️ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा संदेश: अभिव्यक्ति की आज़ादी असीम नहीं, जीवन और गरिमा पहले

✍️ सरकारी कलम संवाददाता
📍 नई दिल्ली | 📅 17 जुलाई 2025

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम नहीं हो सकती और यदि यह किसी व्यक्ति के जीवन और गरिमा के अधिकार (अनुच्छेद 21) से टकराती है, तो अनुच्छेद 21 को प्राथमिकता दी जाएगी।” यह टिप्पणी इंटरनेट पर फैल रही आपत्तिजनक सामग्रियों, खासतौर पर हास्य कार्यक्रमों और पाडकास्ट में दिव्यांगजनों पर की गई अपमानजनक टिप्पणियों के मामले में की गई।


🧑‍⚖️ अदालत ने क्या कहा?

👉 जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि:

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“आजकल इंटरनेट मीडिया पर लोग किसी के भी बारे में कुछ भी कह देते हैं। यह चिंता का विषय है। व्यक्तिगत आज़ादी के साथ-साथ दूसरों के अधिकारों और गरिमा की भी रक्षा जरूरी है।

“अगर अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के बीच टकराव होता है, तो अनुच्छेद 21 को वरीयता दी जाएगी।


🎙️ किस मामले में हुई सुनवाई?

यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आई जिसमें इंडिया गॉट लेटेंट शो के पाडकास्टर और होस्ट समय रैना सहित पांच इंटरनेट इन्फ्लुएंसर के खिलाफ दिव्यांगजनों को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों पर आपत्ति जताई गई थी।

➡️ सुप्रीम कोर्ट ने सभी पांचों से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है और स्पष्ट किया है कि अब और समय नहीं दिया जाएगा।


📜 केंद्र को गाइडलाइन बनाने के निर्देश

पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि से कहा कि:

“इंटरनेट मीडिया के लिए ऐसी गाइडलाइन बनाई जाए जो संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप हो और अभिव्यक्ति की आज़ादी तथा दूसरे के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित कर सके।”

🎯 अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह एक जटिल विषय है और इसके लिए विस्तृत विचार-विमर्श की जरूरत होगी।


🧩 क्यों जरूरी हैं गाइडलाइंस?

  • इंटरनेट मीडिया पर फ्री स्पीच की आड़ में ट्रोलिंग, नफरत, बदनाम करने और संवेदनशील समुदायों पर टिप्पणियां बढ़ती जा रही हैं।
  • इस वजह से समाज में असहिष्णुता, मानसिक पीड़ा और अधिकारों का हनन होता है।
  • सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी आने वाले समय में डिजिटल कंटेंट रेगुलेशन की दिशा में निर्णायक कदम साबित हो सकती है।

📌 सरकारी कलम की टिप्पणी:

अभिव्यक्ति की आज़ादी जरूरी है, लेकिन उतनी ही जरूरी है दूसरे की गरिमा और अधिकारों की रक्षा
⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने जो संतुलन की बात की है, वह आने वाले समय में डिजिटल समाज के लिए दिशासूचक साबित हो सकती है।


🔎 संबंधित अनुच्छेद – संविधान में क्या कहते हैं?

अनुच्छेद विवरण अनुच्छेद 19(1)(a) बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार


📢 डिजिटल भारत के दौर में जब सोशल मीडिया की पहुंच गांव-गांव तक है, ऐसे में जिम्मेदार उपयोग और संवेदनशीलता की सबसे ज्यादा जरूरत है।
🌐 समाज की गरिमा और संविधान की मर्यादा – दोनों बचाए रखना ज़रूरी है।


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