🏫 हाईकोर्ट का फैसला: 5000 स्कूलों के मर्जर पर मुहर, याचिका खारिज
🏫 हाईकोर्ट का फैसला: 5000 स्कूलों के मर्जर पर मुहर, याचिका खारिज
✍️ सरकारी कलम विशेष रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के 5000 से अधिक प्राथमिक स्कूलों के विलय (मर्जर) को लेकर दाखिल याचिकाओं पर लखनऊ हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए 8 जुलाई 2025 को दोपहर बाद याचिकाएं खारिज कर दीं।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने याचिका को “Dismissed” करार दिया। यह फैसला शिक्षा विभाग के पक्ष में गया है, जो 16 जून 2025 के सरकारी आदेश को लेकर था।
🧾 मर्जर आदेश क्या था?
👉 बेसिक शिक्षा विभाग ने छात्रसंख्या कम होने के आधार पर 50 से कम बच्चों वाले स्कूलों को पास के उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय (Pairing) करने का निर्देश दिया था।
👉 सरकार ने इसे गुणवत्ता सुधार और संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में बड़ा कदम बताया था।
⚖️ याचिकाकर्ताओं की दलील:
- 📌 यह निर्णय RTE (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) के खिलाफ है।
- 📌 छोटे बच्चों को लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी, जिससे ड्रॉपआउट रेट बढ़ेगा।
- 📌 यह फैसला ग्रामीण और वंचित वर्ग के बच्चों के शिक्षा के मूलभूत अधिकार का हनन करता है।
👧 प्रमुख याचिकाकर्ता:
सीतापुर की छात्रा कृष्णा कुमारी सहित 51 छात्र एवं अभिभावक। साथ ही कुछ संगठनों और शिक्षकों ने भी अलग याचिका दाखिल की थी।
🏛️ हाईकोर्ट का तर्क (संक्षेप में):
- सरकार का आदेश प्रशासनिक निर्णय की श्रेणी में आता है।
- शिक्षा की गुणवत्ता और संसाधनों के समुचित उपयोग हेतु यह कदम संविधान या RTE के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन नहीं करता।
- बच्चों की पहुंच को ध्यान में रखकर स्थानीय प्रशासन को विवेक का प्रयोग करने की छूट दी गई है।
📣 विरोध की स्थिति:
हालांकि फैसला सरकार के पक्ष में आया है, लेकिन शिक्षकों और अभिभावकों में आक्रोश कायम है।
👉 8 जुलाई को ही प्रदेश भर में बीएसए कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन की योजना पहले से ही घोषित थी।
✍️ सरकारी कलम की टिप्पणी:
भले ही न्यायालय ने इसे कानून के अनुरूप माना हो, लेकिन व्यावहारिक सवाल अभी भी जिंदा हैं —
- क्या छोटे बच्चों के लिए 1-2 किमी दूर स्कूल भेजना सुरक्षित और व्यावहारिक है?
- क्या संसाधनों का केंद्रीकरण ग्रामीण शिक्षा की आत्मा को खत्म नहीं करेगा?
- क्या सरकार ने स्कूलों को सुधारने की जगह, उन्हें बंद करने का सरल रास्ता नहीं अपनाया?
📌 जनता की नजर में ये फैसला एक “कानूनी जीत” पर “सामाजिक हार” जैसा महसूस हो सकता है।
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