🏫 स्कूल विलय पर सवाल: हाईकोर्ट में दाखिल हुई याचिका, बच्चों के अधिकारों पर खतरे का दावा
✍️ विशेष रिपोर्ट | सरकारी कलम | 📍 प्रयागराज
इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार के 16 जून 2025 को जारी किए गए उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत प्रदेश में कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को पास के उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज (विलय) किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं ने इस फैसले को शिक्षा के अधिकार और ग्रामीण बच्चों के मौलिक हक का उल्लंघन बताया है।
⚖️ किसने दाखिल की याचिका?
यह याचिका पीलीभीत जनपद के बिलसंडा ब्लॉक के चांदपुर गांव के तीन निवासियों — सुभाष, यशपाल यादव और अत्येंद्र कुमार — द्वारा दाखिल की गई है। इनका प्रतिनिधित्व परिषदीय अधिवक्ता कुष्माण्डेय शाही कर रहे हैं।
📜 याचिकाकर्ताओं की मुख्य आपत्तियां:
- RTE एक्ट 2009 (Right to Education Act) के तहत 6–14 वर्ष के बच्चों को घर के पास गुणवत्ता युक्त और नि:शुल्क शिक्षा मिलनी चाहिए।
- स्कूल विलय से बच्चों को 1 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय करनी पड़ेगी, जबकि नया स्कूल बुनियादी सुविधाओं से लैस नहीं है।
- आदेश में स्पष्ट मानक नहीं दिए गए हैं, जिससे अधिकारियों को अत्यधिक और मनमानी शक्तियाँ मिल गई हैं।
- यह आदेश ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करता है और गरीब परिवारों के बच्चों की पहुँच में अवरोध खड़ा करता है।
🗣️ “स्कूल बंद कर देना समाधान नहीं है” – याचिकाकर्ता
चांदपुर गांव के निवासियों का कहना है कि स्कूल में छात्रों की संख्या कम होने का अर्थ यह नहीं है कि शिक्षा की ज़रूरत खत्म हो गई है। इसके विपरीत, सरकार को चाहिए कि वह अधोसंरचना सुधारे, जागरूकता बढ़ाए और नामांकन को प्रोत्साहित करे, न कि स्कूल ही बंद कर दे।
🔎 किसे बनाया गया है पक्षकार?
याचिका में प्रदेश के उच्चाधिकारियों को प्रतिवादी बनाया गया है:
- अपर मुख्य सचिव (बेसिक शिक्षा)
- महानिदेशक (स्कूल शिक्षा)
- शिक्षा निदेशक (बेसिक)
- क्षेत्रीय सहायक शिक्षा निदेशक (बरेली मंडल)
- जिलाधिकारी पीलीभीत
- मुख्य विकास अधिकारी
- बेसिक शिक्षा अधिकारी (पीलीभीत)
- खंड शिक्षा अधिकारी (बिलसंडा)
⏳ सुनवाई की प्रतीक्षा
फिलहाल केस स्टेटस पर सुनवाई की तिथि नहीं दिख रही है। परिषदीय अधिवक्ता कुष्माण्डेय शाही के अनुसार, दो-तीन दिन में सुनवाई तय होने की संभावना है।
🚸 बड़ा सवाल: क्या बंद होते स्कूल बच्चों का भविष्य बंद कर देंगे?
राज्य सरकार भले ही इस फैसले को प्रशासनिक सुधार बता रही हो, लेकिन ग्रामीण हकीकत कुछ और कहती है।
बच्चों को दूर भेजना ड्रॉपआउट रेट को बढ़ा सकता है, और इससे शिक्षा के अधिकार का मर्म ही खत्म हो जाएगा।
✍️ निष्कर्ष:
एक ओर सरकार शिक्षा सुधार के नाम पर नेशनल एजुकेशन पॉलिसी लागू कर रही है, दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर स्कूल बंद किए जा रहे हैं।
इस दोहरी नीति को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है — क्या शिक्षा का मतलब सिर्फ ‘संख्या’ है या हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचाना असली लक्ष्य होना चाहिए?
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