📚 सरकारी स्कूलों के विलय पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला सुरक्षित 🏛️
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राथमिक स्कूलों के विलय के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सुनवाई पूरी कर ली है और अब फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। यह मामला शिक्षा व्यवस्था से जुड़ा हुआ है, जिससे हजारों बच्चों और शिक्षकों का भविष्य प्रभावित हो सकता है।
🧑🏫 याचिकाएं: 51 बच्चों की ओर से उठी आवाज़
इस मामले में पहली याचिका सीतापुर के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले 51 बच्चों की ओर से दायर की गई थी। इसके अलावा एक अन्य याचिका भी दर्ज की गई है, जिसे लेकर हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई की।
⚖️ याचिकाकर्ताओं की दलील: शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में यह दलील दी गई कि सरकार का स्कूलों का विलय करने का आदेश, 6 से 14 वर्ष के बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है।
🏫 सरकार की सफाई: संसाधनों का बेहतर उपयोग
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि यह निर्णय बच्चों के हित में लिया गया है। सरकार ने बताया कि ऐसे 18 प्राथमिक स्कूल चिन्हित किए गए हैं, जिनमें एक भी विद्यार्थी नामांकित नहीं है। इन स्कूलों को पास के स्कूलों में विलय करके शिक्षकों और सुविधाओं का बेहतर उपयोग किया जाएगा।
सरकार ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए यह कदम जरूरी है। यह पूरी प्रक्रिया शिक्षा का स्तर उठाने के लिए अपनाई जा रही है।
👨⚖️ सुनवाई के दौरान पेश हुए प्रमुख अधिवक्ता
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुर्दीयाल और मुख्य स्थायी अधिवक्ता शॉलेंद कुमार सिंह कोर्ट में पेश हुए। वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से एल पी मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने पक्ष रखा।
याचिकाकर्ताओं ने बेसिक शिक्षा विभाग के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की। सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
📅 अब फैसले का इंतजार ⏳
अब सभी की नजरें हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। यह फैसला राज्य की शिक्षा नीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। क्या सरकार का यह निर्णय बच्चों के हित में होगा या नहीं — इसका जवाब आने वाले समय में सामने आएगा।