कमजोर वर्ग के बच्चे और कमजोर हो रहे
देश में सामाजिक असमानता की जड़ें कुपोषण जैसी समस्याओं को और गहरा बना रही हैं। हाल ही में सामने आए राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट्स के अनुसार, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के बच्चों में कुपोषण के मामले चिंताजनक स्तर पर हैं।
कुपोषण का कड़ा सच
2015-16 से 2019-21 के बीच कुपोषण के मामलों में अपेक्षित सुधार की बजाय गिरावट देखी गई है। गरीब, हाशिए पर खड़े समुदायों के बच्चे भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
● अनुसूचित जाति के बच्चों में बौनापन 42.5% और अन्य पिछड़ा वर्ग में 35.7% तक
● कमजोर वजन वाले बच्चों की दर भी 32.1% तक रही
डेटा जो सोचने पर मजबूर करे
2005-06 में जहां बौनापन की दर 48% थी, वहीं 2019-21 में अनुसूचित जाति में यह आंकड़ा अब भी 42.5% है। अन्य पिछड़ा वर्ग के बच्चों में भी यह समस्या व्यापक है, जहां 35.7% बच्चे अभी भी सही विकास नहीं कर पा रहे हैं।
कारण और प्रभाव
इस समस्या की जड़ में गरीबी, असमानता, अशिक्षा और सामाजिक उपेक्षा छिपी है। जब बच्चों को संतुलित आहार, साफ पानी, स्वच्छता और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा नहीं मिलती, तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास बाधित होता है। यह सिर्फ एक स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विकास का भी मुद्दा है।
क्या किया जाना चाहिए?
सरकार को चाहिए कि वह केवल योजनाएं बनाने तक सीमित न रहे, बल्कि उनका जमीनी क्रियान्वयन सुनिश्चित करे। मिड-डे मील, आंगनबाड़ी, और पोषण अभियान जैसी योजनाओं को कमजोर वर्गों तक सशक्त तरीके से पहुंचाया जाए। साथ ही सामाजिक चेतना और शिक्षा में सुधार से दीर्घकालीन समाधान की दिशा में कदम बढ़ाए जाने चाहिए।
यह लेख डेटा और रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार किया गया है ताकि समाज में पोषण से जुड़ी असमानताओं को उजागर किया जा सके।