flipkart amazon zomato जैसी बड़ी कंपनियां प्रभावित डिजिटल दुनिया में नया उपभोक्ता सुरक्षा कवच: सरकार ने “डार्क पैटर्न” पर कसी नकेल

डिजिटल दुनिया में नया उपभोक्ता सुरक्षा कवच: सरकार ने डार्क पैटर्न पर कसी नकेल

डिजिटल युग में जहां सुविधाएं बढ़ी हैं, वहीं उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी के तरीके भी तकनीक के साथ उन्नत हो गए हैं। ई-कॉमर्स वेबसाइटों और ऐप्स पर दिखने वाले आकर्षक ऑफर, समय-सीमा वाले डिस्काउंट और स्वचालित दान जैसी चीजें कभी-कभी भ्रामक साबित होती हैं। इन्हीं तकनीकों को “डार्क पैटर्न” कहा जाता है — और अब भारत सरकार ने इन्हें रोकने के लिए सख़्त कदम उठाया है।


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क्या हैं डार्क पैटर्न?

डार्क पैटर्न डिज़ाइन की ऐसी रणनीति है, जो उपभोक्ता को बिना उनकी पूरी जानकारी या मर्ज़ी के कोई सेवा या उत्पाद लेने के लिए प्रेरित या मजबूर करती है। इसका मकसद उपभोक्ता की स्वाभाविक सोच को भ्रमित कर जबरन बिक्री, बिना सहमति शुल्क वसूली, या डेटा हासिल करना होता है।


सरकार का बड़ा फैसला

केंद्र सरकार ने सभी कंपनियों को 3 महीने की समयसीमा देते हुए निर्देश जारी किया है कि वे अपनी वेबसाइटों और ऐप्स से ऐसे सभी भ्रामक डिज़ाइनों को हटाएं। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की सचिव निधि खरे ने साफ कहा कि यह व्यवहार अनुचित व्यापार प्रथा की श्रेणी में आता है और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।


कौन-कौन से हैं 13 प्रतिबंधित डार्क पैटर्न?

सरकार द्वारा पहचाने गए प्रमुख 13 डार्क पैटर्न निम्नलिखित हैं:

  1. झूठी तात्कालिकता – “सिर्फ 2 कमरे बचे हैं” जैसे संदेश दिखाना।
  2. बिना सहमति वस्तु जोड़ना – कार्ट में खुद-ब-खुद दान या बीमा जुड़ जाना।
  3. भावनात्मक दबाव – सहानुभूति या डर का इस्तेमाल कर खरीददारी कराना।
  4. जबरन अपग्रेड – फ्री सेवा तब तक रोकना जब तक उपभोक्ता प्रीमियम न ले।
  5. सब्सक्रिप्शन मजबूरी – किसी सेवा का उपयोग तभी संभव बनाना जब वह सब्सक्राइब करे।
  6. सब्सक्रिप्शन जाल – रद्द करने की प्रक्रिया को जटिल बनाना।
  7. इंटरफेस हेरफेर – जरूरी सूचनाएं छिपाकर गैरजरूरी चीज़ें हाइलाइट करना।
  8. प्रलोभन देना – सस्ते ऑफर दिखाना और स्टॉक खत्म बताकर महंगा विकल्प देना।
  9. छिपे शुल्क – शुरुआत में कम कीमत दिखाना और बाद में अन्य शुल्क जोड़ना।
  10. छद्म विज्ञापन – सामान्य सामग्री जैसा दिखने वाला विज्ञापन।
  11. सास बिलिंग – फ्री ट्रायल के नाम पर डेबिट कार्ड जानकारी लेना।
  12. उलझे सवाल – विकल्पों को भ्रमित करने वाला बनाना जिससे गलती हो।
  13. फेक मालवेयर अलर्ट – नकली वायरस दिखाकर सुरक्षा सॉफ्टवेयर खरीदवाना।

उपभोक्ताओं को होगा सीधा लाभ

  • विश्वास बढ़ेगा: ग्राहक वेबसाइट पर अधिक पारदर्शिता देखेंगे।
  • धोखाधड़ी में कमी: मजबूरी में ली गई सेवाएं या उत्पाद नहीं होंगे।
  • सहज अनुभव: सब्सक्रिप्शन रद्द करना और उत्पाद चुनना आसान होगा।

निष्कर्ष

डिजिटल सेवाओं की दुनिया में पारदर्शिता और ईमानदारी अब केवल नैतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि कानूनी आवश्यकता बन चुकी है। उपभोक्ता मंत्रालय का यह कदम डिजिटल इंडिया को एक सुरक्षित, भरोसेमंद और जवाबदेह बाज़ार में बदलने की दिशा में एक निर्णायक पहल है।

अब ज़रूरत है उपभोक्ताओं को भी जागरूक रहने की— ताकि वे हर क्लिक से पहले सोचें, समझें और किसी भी डार्क पैटर्न का शिकार न हों।


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