⚖️ सिर्फ डांटना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दी स्पष्टता, हर डांट या फटकार को उकसावे का कारण नहीं माना जा सकता
🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी छात्र को सिर्फ डांटना आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा गंभीर अपराध नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि कोई भी सामान्य व्यक्ति यह कल्पना नहीं कर सकता कि महज डांटने
यह मामला मद्रास हाईकोर्ट से संबंधित था, जिसमें एक हॉस्टल वार्डन पर आरोप लगाया गया था कि उसने एक छात्र को डांटा, जिसके बाद छात्र ने आत्महत्या कर ली। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें वार्डन को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसावा) के तहत दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने कहा:
“केवल डांटना आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं हो सकता। वार्डन का उद्देश्य छात्र को सुधारने का था, न कि उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का।” कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि ऐसे मामलों में इरादे की गंभीरता और स्थिति की वास्तविकता का गहराई से विश्लेषण करना आवश्यक है। अपीलकर्ता हॉस्टल वॉर्डन ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी: सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी यह स्पष्ट किया है कि: इन टिप्पणियों से साफ है कि कोर्ट मनोवैज्ञानिक कारणों और कानूनी दायरे को अलग-अलग देखता है। यह फैसला उन शिक्षकों, अभिभावकों और प्रबंधन से जुड़े लोगों के लिए राहत की खबर है, जो कभी-कभी अनुशासन बनाए रखने के लिए छात्रों को फटकारते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह दिखाया है कि न्याय सिर्फ भावनाओं पर नहीं, बल्कि पर आधारित होना चाहिए।🎓 मामला क्या था?
📌 कोर्ट की टिप्पणी
🙏 डांटना था सुधार के लिए, दुश्मनी नहीं
📜 पूर्व मामलों का हवाला
🧠 न्यायिक संतुलन और जिम्मेदारी
“डांटना सुधार का जरिया है, न कि सजा का माध्यम।”