प्राथमिक विद्यालयों में समर कैंप के साथ रामायण और वेद कार्यशालाओं को हाईकोर्ट की मंजूरी
(इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका को बताया दुर्भावनापूर्ण, खारिज किया)
लखनऊ, 23 मई:
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बच्चों के लिए आयोजित रामायण एवं वेद कार्यशालाओं को इलाहाबाद हाईकोर्ट की हरी झंडी मिल गई है। अदालत ने इस योजना के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका को खारिज करते हुए इसे दुर्भावनापूर्ण और तथ्यहीन बताया।
मामले की पृष्ठभूमि:
सांस्कृतिक विभाग द्वारा समर कैंप के तहत आयोजित की जाने वाली इस कार्यशाला में बच्चों को रामायण, वेद, रामलीला, क्ले मॉडलिंग, वेदगान और सामान्य ज्ञान जैसी गतिविधियों से जोड़ने की योजना है। इसके पीछे उद्देश्य बच्चों में नैतिक मूल्यों, संस्कार और सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता लाना है।
याचिका का तर्क:
देवरिया निवासी डॉ. चतुरानन ओझा ने याचिका दाखिल कर दावा किया कि:
- यह कार्यशाला वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर हमला है।
- धर्मनिरपेक्षता और संविधान की भावना के खिलाफ है।
- इससे जातिगत व लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा।
सरकार की दलील:
राज्य सरकार ने जवाब में कहा:
- यह कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एवं नैतिक शिक्षा का प्रयास है।
- इसका उद्देश्य बच्चों में संस्कार, कला, और नैतिकता के प्रति रुचि जगाना है।
- यह कार्यशाला स्वैच्छिक होगी, अनिवार्य नहीं।
कोर्ट का फैसला:
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति शैलेंद्र क्षितिज की पीठ ने कहा:
- याची अपनी विधिक पात्रता (locus standi) साबित नहीं कर सका।
- याची यह भी नहीं बता सका कि उसे आदेश की प्रति किस आधार पर प्राप्त हुई।
- कोर्ट ने कार्यशाला को सांस्कृतिक गतिविधि बताते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
निष्कर्ष:
अब यूपी के प्राथमिक विद्यालयों में ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के दौरान रामायण और वेद कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी, जिनमें बच्चे कला, संस्कृति और नैतिक मूल्यों से रूबरू होंगे। यह फैसला न केवल शिक्षा में भारतीय परंपराओं के समावेश की ओर एक कदम है, बल्कि यह बताता है कि संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता का अर्थ संस्कृति से दूरी नहीं, बल्कि सभी दृष्टिकोणों को सम्मान देना है।