भारत धर्मशाला नहीं जो सबको शरण दे: सुप्रीम कोर्ट

भारत धर्मशाला नहीं जो सबको शरण दे: सुप्रीम कोर्ट

हम पहले ही 140 करोड़: श्रीलंकाई नागरिक की याचिका खारिज

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है जो हर किसी को शरण देता रहे। अदालत ने श्रीलंकाई नागरिक की याचिका को खारिज करते हुए यह सख्त टिप्पणी की।

यह मामला एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी से जुड़ा था जो 2015 में भारत आया और तमिलनाडु के मंडपम शरणार्थी कैंप में रह रहा था। बाद में उसने भारत में शरण लेने की गुहार लगाई थी।

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2018 में उसके आवेदन को ट्रिब्यूनल ने और फिर 2022 में गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत पहले से ही 140 करोड़ लोगों का बोझ संभाल रहा है, और अब वह हर किसी को शरण नहीं दे सकता।

मामला 1: दूसरे देश में शरण लो

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 19 (नागरिकों के मौलिक अधिकार) का हवाला देते हुए कहा कि:

  • ये अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को मिलते हैं।
  • शरणार्थियों को ये अधिकार देने की कोई बाध्यता नहीं है।
  • किसी भी विदेशी को यह अधिकार नहीं कि वह भारत में जबरन रह सके।

अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को किसी अन्य देश में शरण लेनी चाहिए।

मामला 2: जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग पर तत्काल सुनवाई

एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई करते हुए कहा कि पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग पर तुरंत सुनवाई होनी चाहिए। यह मामला यौन उत्पीड़न से जुड़ा है और सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है।

मामला 3: बिटकॉइन पर स्पष्ट नीति क्यों नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल पूछा कि बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टो करेंसी पर अब तक कोई स्पष्ट नीति क्यों नहीं बनाई गई है।

अदालत ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी को लेकर हो रहे घोटालों और निवेशकों को हो रहे नुकसान के मद्देनजर एक ठोस नीति की जरूरत है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह इस पर जल्द से जल्द विचार करे और लोगों को सुरक्षित निवेश का रास्ता प्रदान करे।

निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से स्पष्ट है कि देश की सुरक्षा, जनसंख्या और नीति निर्धारण को ध्यान में रखते हुए ही शरणार्थियों, न्यायिक मांगों और नई तकनीकों पर फैसले लिए जा रहे हैं। भारत अब हर याचिका को आंख बंद कर मानने वाला देश नहीं रह गया है।

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