साइबर बुलिंग का बढ़ता खतरा: स्कूल के बच्चे भी बन रहे शिकार
लखनऊ: मोबाइल और इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के साथ बच्चों पर एक नया खतरा मंडरा रहा है—साइबर बुलिंग। बलरामपुर अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि अब छोटे स्कूली बच्चे भी ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
क्या है साइबर बुलिंग?
डॉ. शुक्ला के अनुसार, सोशल मीडिया, टेक्स्ट मैसेज, गेमिंग प्लेटफॉर्म या किसी भी ऑनलाइन माध्यम से किसी बच्चे को परेशान करना, डराना, धमकाना या अपमानित करना साइबर बुलिंग है।
तेज़ी से बढ़ रही समस्या
बीते कुछ महीनों में साइबर बुलिंग के मामलों में 20 से 30% की वृद्धि देखी गई है। 13 से 18 वर्ष के बच्चे अधिक शिकार बन रहे हैं। खासतौर पर वे बच्चे जो ज्यादा समय सोशल मीडिया या ऑनलाइन गेम्स में बिताते हैं।
कैसे होता है असर?
- सिरदर्द और नींद में खलल
- स्कूल में ध्यान न लगना
- अकेलापन, डिप्रेशन और आत्मविश्वास की कमी
- बात-बात पर गुस्सा या डर लगना
दूसरों को डराने वाले भी बच्चे
डॉ. शुक्ला ने बताया कि कई बार बच्चे खुद दूसरों को डराने या ब्लैकमेल करने लगते हैं। सोशल मीडिया और चैटिंग ऐप्स पर बच्चों का व्यवहार असामान्य हो सकता है, जो बाद में गंभीर मानसिक समस्याओं में बदल सकता है।
क्या करें माता-पिता?
- बच्चों से संवाद बनाए रखें
- उनके ऑनलाइन व्यवहार पर नजर रखें
- जरूरत हो तो काउंसलर या मनोचिकित्सक की मदद लें
- साइबर बुलिंग की रिपोर्ट करें और स्कूल प्रशासन को जानकारी दें
बच्चों को करें शिक्षित
अभिभावकों और स्कूलों को चाहिए कि वे बच्चों को साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक करें। ऑनलाइन व्यवहार की शालीनता और दूसरों की निजता का सम्मान करना सिखाएं।
स्रोत: बलरामपुर अस्पताल, लखनऊ