देश में आरक्षण का हाल ट्रेन की बोगी जैसा, जो अंदर है, दूसरे को घुसने नहीं देता : सुप्रीम कोर्ट

देश में आरक्षण का हाल ट्रेन की बोगी जैसा, जो अंदर है, दूसरे को घुसने नहीं देता : सुप्रीम कोर्ट

महाराष्ट्र निकाय चुनाव, IIT-NEET आत्महत्या और पटाखा प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियाँ

आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देश में आरक्षण व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह अब ट्रेन की बोगी जैसा हो गया है — “जो अंदर है, वो किसी और को घुसने नहीं देता।” कोर्ट ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण को लेकर सुनवाई करते समय दी।

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सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि 2016-2017 से लंबित रिपोर्ट्स को अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया और OBC समुदाय के लिए राजनीतिक आरक्षण का आधार क्या है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि कई परिवारों को एक ही लाभ कई बार मिलता है, जबकि वंचित वर्ग अभी भी पीछे रह जाता है।

मामला 1: महाराष्ट्र निकाय चुनाव और OBC आरक्षण

  • राज्य सरकार ने इम्पिरिकल डाटा की रिपोर्ट 2021 में तैयार की थी।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 4 हफ्तों में चुनाव अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया।
  • सरकार को राजनीतिक आरक्षण के आधार पर पारदर्शिता दिखानी होगी।

मामला 2: IIT और NEET छात्र आत्महत्या पर अदालत की चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि IIT और NEET जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में छात्र आत्महत्या की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं। अदालत ने केंद्र से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है कि क्या इन छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग मिल रहा है या नहीं।

याचिकाकर्ता ने कहा कि पिछले 5 वर्षों में लगभग 33 छात्रों ने आत्महत्या की, जिनमें SC-ST और OBC वर्गों की संख्या अधिक रही। कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर सामाजिक चिंता का विषय है और सभी संस्थानों में तत्काल काउंसलिंग व सहायता की व्यवस्था होनी चाहिए।

मामला 3: राष्ट्रीय राजधानी में पटाखों पर प्रतिबंध

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR राज्यों को निर्देश दिया कि पटाखों पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू किया जाए। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा कि प्रतिबंध केवल कागज़ी न हो, उसे जमीन पर उतारना जरूरी है।

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान को विशेष रूप से निर्देशित किया कि वे ग्रीन पटाखों को ही अनुमति दें और गैरकानूनी पटाखों की बिक्री पर जुर्माना व कार्रवाई सुनिश्चित करें।

निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों से स्पष्ट है कि देश के महत्वपूर्ण सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर अदालत गंभीर है। चाहे वह आरक्षण प्रणाली में सुधार हो या छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा या वायु प्रदूषण पर नियंत्रण— न्यायपालिका की भूमिका निर्णायक बनती जा रही है।

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