प्राथमिक शिक्षा का स्तर सुधारना था, और कर रहे बाबूगिरी!

प्राथमिक शिक्षा का स्तर सुधारना था, और कर रहे बाबूगिरी!

एआरपी के जिम्मे गुणवत्ता सुधार का काम था, लेकिन 50% पद जिलों में खाली और कई एआरपी कर रहे गैरशैक्षणिक काम

लखनऊ: प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए एआरपी (एकेडमिक रिसोर्स पर्सन) की नियुक्ति की गई थी, लेकिन हकीकत में इनका उपयोग गैर-शैक्षणिक कार्यों और कार्यालयी बाबूगिरी में किया जा रहा है।

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एआरपी की भूमिका और हकीकत

शिक्षकों की नियुक्ति और शिक्षण में गुणवत्ता लाने के लिए एआरपी का गठन हुआ था। लेकिन 50 पदों में से 25 पदों पर ही एआरपी तैनात हैं। बाकी पद खाली पड़े हैं, जिससे स्कूलों में निगरानी और सुधार कार्य प्रभावित हो रहा है।

एआरपी से जुड़ी चिंताएं

ज्यादातर एआरपी को कार्यालय में डेस्क वर्क सौंप दिया गया है, जो उनके वास्तविक दायित्वों से अलग है। कई बार बिना आदेश के शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है, जिससे पठन-पाठन बाधित होता है।

“एआरपी का काम सिर्फ प्रधानाध्यापक स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता सुधारना है। इनका तबादला केवल शिक्षण कार्य की निगरानी के लिए होना चाहिए।” – शिक्षा विभाग अधिकारी

एआरपी के मुख्य कार्य

  • बच्चों की उपस्थिति, पठन, लेखन, गणित कौशल की निगरानी
  • विद्यालयों का निरीक्षण और शिक्षकों को शैक्षिक सलाह देना
  • शिक्षण योजना पर निगरानी
  • प्रशिक्षण की आवश्यकता के अनुसार शिक्षकों की सहायता

ये काम किए जा रहे हैं, जो एआरपी के काम नहीं

  • आदेश लिखने का कार्य
  • डायरी पंजी भरना
  • ऑफिस ड्यूटी, फॉर्म भरवाना
  • शिक्षकों की जानकारी संकलन
  • डाटा एंट्री जैसे काम

योजना थी कि शिक्षण व्यवस्था में नवाचार और सहयोग के ज़रिए सुधार हो, लेकिन प्रशासनिक आदेशों ने एआरपी को शिक्षक सहयोगी के बजाय बाबू बना दिया है। अब समय है कि एआरपी की भूमिका पुनः परिभाषित की जाए और उनका उपयोग शैक्षणिक सुधार में ही किया जाए।

रिपोर्ट: सुशील सिंह | स्रोत: स्थानीय शिक्षा विभाग रिपोर्ट

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