मोटापा कम करने वाली दवाओं को डब्ल्यूएचओ की मंजूरी की तैयारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) मोटापा कम करने वाली दवाओं को औपचारिक मंजूरी देने की तैयारी में है। यह पहली बार है जब संगठन इस तरह की दवाओं को मोटापे के इलाज का एक हिस्सा मानने जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, यह फैसला अगस्त या सितंबर तक औपचारिक रूप से लिया जा सकता है।
नई गाइडलाइंस पर काम जारी
डब्ल्यूएचओ 2022 से मोटापा रोकने और उसके इलाज को लेकर नए दिशानिर्देश तैयार कर रहा है। इन सिफारिशों में यह बताया जाएगा कि किन परिस्थितियों में, किस उम्र और किन शर्तों के तहत इन दवाओं का इस्तेमाल उचित होगा। अगले सप्ताह एक महत्वपूर्ण बैठक होनी है, जिसमें यह तय होगा कि क्या इन दवाओं को ‘आवश्यक दवाओं की सूची’ में शामिल किया जाए।
महंगी कीमत पर चिंता
डब्ल्यूएचओ ने इन दवाओं की अत्यधिक कीमत पर चिंता जताई है। संगठन ने खासकर गरीब और निम्न मध्यम आय वाले देशों में इनकी पहुंच सुनिश्चित करने की जरूरत बताई है। भारत समेत कई विकासशील देशों में भी मोटापे से ग्रसित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
दवाओं की चर्चा
वegovy और Zepbound जैसी दवाएं चर्चा में हैं। ये दवाएं शरीर में भूख को नियंत्रित करने वाले हार्मोन की तरह काम करती हैं, जिससे पाचन धीमा होता है और लंबे समय तक भूख नहीं लगती। क्लिनिकल ट्रायल में इन दवाओं से 15-20 फीसदी तक वजन कम होने के नतीजे सामने आए हैं।
चुनौतियां और चिंताएं
इन दवाओं की उच्च लागत, लंबे समय तक उपयोग और साइड इफेक्ट्स चिंता का विषय हैं। हर महीने करीब 85 हजार रुपये तक खर्च हो सकता है, और स्थायी असर के लिए जीवनभर दवा लेनी पड़ सकती है। पैक्रियाटाइटिस और पेट संबंधी समस्याएं देखी गई हैं।
मोटापे की समस्या
दुनियाभर में 1 अरब से अधिक लोग मोटापे से पीड़ित हैं, और 70% पीड़ित निम्न-मध्यम आय वाले देशों में रह रहे हैं। भारत में भी 10.1 करोड़ लोग मोटापे से पीड़ित हैं, और 7.5 करोड़ लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं।
निष्कर्ष
मोटापा कम करने वाली दवाओं को डब्ल्यूएचओ की मंजूरी एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन इनकी पहुंच और कीमत को लेकर चिंताएं भी हैं। इन दवाओं को आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल करने से मोटापे से पीड़ित लोगों को राहत मिल सकती है, लेकिन सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों को इनकी पहुंच और कीमत को लेकर काम करना होगा।