साइबर अपराध की आड़ में आतंक की फंडिंग: रायबरेली के चार युवकों ने खोले 150 खाते, दुबई-पाकिस्तान से आए 162 करोड़
रायबरेली, उत्तर प्रदेश – एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है जिसने देश की आंतरिक सुरक्षा को झकझोर कर रख दिया है। रायबरेली जिले के चार साइबर अपराधियों ने पाकिस्तान निवासी रहीम नामक व्यक्ति की मदद से उत्तर प्रदेश और बिहार में सक्रिय आतंकी स्लीपर सेल को फंडिंग कराई है।
इस फंडिंग के लिए रहीम ने भारत में 150 से अधिक बैंक खाते खुलवाए और उन्हीं खातों के जरिए दुबई और पाकिस्तान से करीब 162 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए। बदले में रायबरेली के युवकों को 7-8 प्रतिशत कमीशन दिया गया।
नाम हैं आम लेकिन कहानी है हैरान कर देने वाली
सोनू पांडेय, दुर्गेश पांडेय, संजय पांडेय और सत्यम मिश्रा— ये नाम सुनने में आम लगते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल एक असाधारण और खतरनाक साजिश में हुआ। रहीम ने इन्हें लालच देकर अपने नेटवर्क का हिस्सा बना लिया और इन युवकों ने अपने जिले डलमऊ, लालगंज, ऊंचाहार व महाराजगंज में 325 से अधिक लोगों के नाम पर फर्जी बैंक खाते खुलवाए।
इन खातों से जुड़े डेबिट कार्ड और मोबाइल नंबर की सिम कार्ड भी ये खुद रखते थे ताकि रकम की आवाजाही पर पूरा नियंत्रण बना रहे।
जेल में बंद आरोपियों से हुआ खुलासा
रायबरेली पुलिस और एसटीएफ ने जब गहन जांच की तो दुर्गेश और संजय से जेल में पूछताछ की गई। पूछताछ में इन दोनों ने चौंकाने वाली बातें कबूलीं—रहीम खुद दुबई और पाकिस्तान से रकम भेजता था, जिसे यूपीआई और नेट बैंकिंग के माध्यम से निकाल कर दूसरे खातों में भेजा जाता था।
जब उत्तर प्रदेश में सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ मजबूत हुई, तब इन साइबर अपराधियों ने बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बैंक खातों की चेन बना ली।
नेपाल सीमा के पास पहुंचा 50 करोड़ रुपये का जाल
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि दुर्गेश ने करीब 50 करोड़ रुपये नेपाल से सटे सीमावर्ती जिलों में भेजे। ये इलाके लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर रहे हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों की सक्रियता पहले से दर्ज रही है।
दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी और समस्तीपुर जैसे जिलों के कई खातों में फंडिंग हुई, जहां के कुछ युवाओं के पारिवारिक संबंध पूर्व में आतंकवादी संगठनों से जुड़ चुके हैं।
देश की सुरक्षा के लिए चुनौती
पूर्व आईबी अधिकारी संतोष सिंह का कहना है,
“यह मामला आतंकवाद और साइबर अपराध के गठजोड़ की एक खतरनाक मिसाल है। आने वाले दो साल (2027 तक) देश की सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। किसी बड़ी साजिश की नींव अभी से रखी जा रही हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।”
सबक और सवाल
इस पूरे मामले ने कई सवाल खड़े किए हैं —
- कैसे एक विदेशी हैंडलर भारत में इतनी बड़ी रकम भेजने में सफल रहा?
- देश के युवाओं को लालच देकर आतंक की राह पर धकेलने वाली यह नेटवर्किंग कब से चल रही थी?
- क्या देश की बैंकिंग प्रणाली इतनी असुरक्षित है कि फर्जी खातों के जरिए करोड़ों की रकम अंदर-बाहर हो जाती है?
इस खबर में सिर्फ अपराध ही नहीं, बल्कि देश की आत्मा पर किया गया हमला है। अब जरूरी है कि इस जाल को जड़ से खत्म किया जाए और आने वाले वर्षों के लिए एक मजबूत, डिजिटल और सुरक्षा-केंद्रित तंत्र तैयार किया जाए।
लेखक: सरकारी कलम