सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन के अधिकार पर विचार
मुख्य बिंदु:✅
- सुप्रीम कोर्ट ने वायुसेना द्वारा सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन से इन्कार करने के फैसले पर सवाल उठाए।
- न्यायालय ने यह कहा कि “मां” शब्द अत्यंत व्यापक है और जैविक मां ही नहीं, जो बच्चों का पालन-पोषण करती है, वह भी मां मानी जा सकती है।
- वायुसेना ने 6 साल की उम्र से अपने सौतेले बेटे का पालन-पोषण करने वाली महिला को पारिवारिक पेंशन देने से इनकार किया था, जिसका सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से मूल्यांकन करने का आदेश दिया है।
क्या था मामला?🤔
यह मामला जयश्री नामक महिला की याचिका से संबंधित है, जिन्होंने अपने सौतेले बेटे हर्ष का पालन-पोषण उसकी जैविक मां के निधन के बाद किया था। जब हर्ष की मृत्यु हुई, तो महिला ने वायुसेना से पारिवारिक पेंशन की मांग की, जिसे वायुसेना ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यह केवल जैविक मां को दिया जा सकता है। इस निर्णय को चुनौती देने के लिए जयश्री ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) का रुख किया था। हालांकि, एएफटी ने वायुसेना के फैसले को सही ठहराया। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की गहराई से जांच करेगा।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:🔨
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “मां” शब्द के तहत केवल जैविक मां ही नहीं, बल्कि वह महिला भी आती है, जिसने बच्चे का पालन-पोषण किया हो। कोर्ट ने वायुसेना के वकील से पूछा कि अगर सौतेली मां ने बच्चे का पालन-पोषण किया है, तो क्या उसे पारिवारिक पेंशन का हक नहीं मिलना चाहिए?
पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों को पूर्व निर्णयों और कानूनी मानदंडों का अध्ययन करने के लिए कहा और 7 अगस्त तक मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया।
सौतेली मां से संबंधित निर्णय:📜
वायुसेना के वकील ने यह दावा किया कि कई निर्णय सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन से वंचित करते हैं, और नियमों के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि पारिवारिक पेंशन केवल जैविक मां को ही दी जा सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खुला छोड़ दिया और आगे की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय की।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:⏭️
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आज के समय में पारिवारिक संबंधों की व्याख्या बहुत ही व्यापक हो गई है। न्यायालय ने यह संकेत दिया कि केवल जैविक संबंध ही पारिवारिक अधिकारों का निर्धारण नहीं कर सकते, बल्कि जो व्यक्ति किसी बच्चे का पालन-पोषण करता है, वह भी समान रूप से माँ के अधिकारों का हकदार हो सकता है।
निष्कर्ष:⬇️
यह मामला भारतीय न्यायपालिका द्वारा पारिवारिक पेंशन के नियमों पर पुनः विचार करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसमें सांविधानिक अधिकार और न्यायिक विवेक का समावेश है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि पारिवारिक संबंधों का निर्धारण केवल जैविक संबंधों तक सीमित नहीं रह सकता।