हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अनुकंपा के आधार पर सहायक अध्यापक की नियुक्ति असंवैधानिक
उत्तर प्रदेश सरकार के दो शासनादेश रद्द, शिक्षा की गुणवत्ता पर जताई चिंता
न्यायमूर्ति अजय भानोत की पीठ ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और शिक्षा सेवा अधिनियम 1981 का हवाला देते हुए कहा कि सहायक अध्यापक पद एक गुणवत्तापूर्ण, तकनीकी और शैक्षिक योग्यता
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वर्ष 2000 से 2013 के बीच जो नियुक्तियां अनुकंपा के आधार पर सहायक अध्यापक के रूप में हुईं, वे संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन करती हैं और इन्हें वैध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने इस फैसले के साथ शिक्षा के गिरते स्तर पर भी चिंता जताई और कहा कि सिर्फ सहानुभूति के आधार पर चयन से शिक्षा प्रणाली कमजोर होती है। कोर्ट ने कहा कि सहायक अध्यापक एक विशिष्ट शैक्षिक पद है, जिसमें प्रवेश के लिए सामान्य प्रक्रिया और पात्रता परीक्षा से गुजरना अनिवार्य है। अनुकंपा के आधार पर सीधे चयन से योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का उल्लंघन होता है। कोर्ट ने 1999 और 2021 के शासनादेशों को रद्द करते हुए कहा कि ऐसी नीतियां शिक्षा के संवैधानिक उद्देश्य के विरुद्ध हैं। अनुकंपा की नियुक्ति व्यवस्था को कोर्ट ने मानवीय आधार पर सही तो माना, लेकिन इसे शैक्षणिक पदों पर लागू करना अनुचित बताया। हाईकोर्ट के इस निर्णय ने साफ कर दिया कि शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता और पारदर्शिता सर्वोपरि होनी चाहिए। केवल अनुकंपा के आधार पर शिक्षक नियुक्त करने से न केवल योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन होता है, बल्कि छात्रों के भविष्य के साथ भी समझौता होता है। यह फैसला आने वाले समय में शिक्षा विभाग की नियुक्ति प्रक्रिया में नई दिशा तय करेगा।2000 से 2013 तक दिए गए नियुक्ति आदेश हुए निरस्त
क्या कहा कोर्ट ने?
शासनादेशों पर अदालत की टिप्पणी
न्यायिक संदेश और निष्कर्ष