सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: “शादी का वादा कर यौन संबंध बनाना हर हाल में दुष्कर्म नहीं”
– जस्टिस नागरत्ना व शर्मा की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा— “वादा पूरा न करने का इरादा होना चाहिए”
नई दिल्ली, 12 अप्रैल 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि महज शादी का वादा कर यौन संबंध बनाने का हर मामला दुष्कर्म (आईपीसी की धारा 375) नहीं माना जाएगा। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी नईम अहमद बनाम दिल्ली सरकार के मामले में करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।

फैसले के मुख्य बिंदु
- क्या कहा कोर्ट ने?
- आईपीसी की धारा 375 तभी लागू होगी, जब शादी का वादा सिर्फ यौन संबंध के लिए सहमति हासिल करने का जरिया हो और आरोपी का शुरू से ही वादा पूरा करने का इरादा न हो।
- पीठ ने पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि रिश्तों में विश्वासघात और दुष्कर्म के बीच अंतर स्पष्ट है।
- मामले की पृष्ठभूमि:
- दिल्ली की एक महिला ने आरोप लगाया था कि नईम अहमद ने शादी का वादा कर उसके साथ यौन संबंध बनाए, लेकिन बाद में उसने शादी से इनकार कर दिया।
- सत्र अदालत ने आरोपी को आरोपमुक्त किया, लेकिन हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए दुष्कर्म का मामला बनाया।
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि सभी तथ्यों के आधार पर आरोपी को आरोपमुक्त करना सही था।
कोर्ट ने किन मामलों का हवाला दिया?
- अनुज तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023): सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वादा पूरा न करने को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।
- प्रमोद सुरेंद्र पाटिल बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021): “यौन संबंध सहमति से बने हों, तो धारा 375 लागू नहीं।”
ग्रेडिंग सिस्टम पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
इसी दिन, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने शिक्षण संस्थानों की ग्रेडिंग प्रणाली को लेकर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, यूजीसी और एनएएसी को नोटिस जारी किया। एनजीओ बिस्ट्रो डेस्टिनो फाउंडेशन की याचिका पर कोर्ट ने कहा:
- “हम जानना चाहते हैं कि एनएएसी कॉलेजों को ग्रेड कैसे देता है।”
- एनएएसी (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) 1994 से संस्थानों को पाठ्यक्रम, संकाय और बुनियादी ढांचे के आधार पर ग्रेड देता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यौन अपराधों की कानूनी व्याख्या को स्पष्ट करता है, जबकि शिक्षा मामले में नोटिस ग्रेडिंग प्रणाली की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है।
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(अधिक जानकारी के लिए सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट देखें।)