दमोह में दिल दहला देने वाला खुलासा: फर्जी डॉक्टर ने की हार्ट सर्जरी, 7 मरीजों की मौत
दमोह (मध्य प्रदेश):
मध्य प्रदेश के दमोह जिले से स्वास्थ्य व्यवस्था को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। ब्रिटेन के मशहूर चिकित्सक डॉ. एन जॉन केम के नाम पर फर्जी दस्तावेजों के सहारे खुद को हृदय रोग विशेषज्ञ बताकर हार्ट सर्जरी करने वाला नरेंद्र विक्रमादित्य यादव अब फरार है। सात मरीजों की मौत के बाद यह मामला उजागर हुआ है, और अब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी इस पर जांच के आदेश दे दिए हैं।
7 मौतें, दर्जनों सवाल – अस्पताल की चुप्पी
मामला फरवरी 2025 का है, जब मिशन अस्पताल दमोह में दिल के रोगियों की इलाज के दौरान मौतों की संख्या बढ़ने लगी। जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष अधिवक्ता दीपक तिवारी ने इस पर कलेक्टर से शिकायत करते हुए आशंका जताई कि मौतों की संख्या सात से अधिक हो सकती है।
जांच के दौरान नरेंद्र द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज पूरी तरह फर्जी पाए गए। उसके पास न तो वैध मेडिकल डिग्री थी, और न ही कोई मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण। फिर भी वह आयुष्मान भारत योजना का लाभ उठाते हुए अस्पताल में मरीजों का ऑपरेशन कर रहा था।
मिशन अस्पताल पर भी सवालों की बौछार
यह मामला केवल फर्जी डॉक्टर तक सीमित नहीं, बल्कि सवालों के घेरे में है वो ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित अस्पताल जिसने न तो डॉक्टर के दस्तावेजों का सत्यापन किया, न ही उसकी पहचान की पुष्टि।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने इस विषय को सोशल मीडिया पर उठाया, जिसके बाद यह मामला वायरल हो गया। अब अस्पताल को मिले आयुष्मान भारत योजना के फंडिंग की भी जांच की जा रही है।
जांच में निकले हैदराबाद केस के तार
खुलासे में यह भी सामने आया है कि नरेंद्र विक्रमादित्य यादव पर हैदराबाद में भी इसी तरह का एक मामला दर्ज है, जहां उसने किसी ब्रिटिश डॉक्टर के नाम पर फर्जीवाड़ा किया था।
अधिकारियों की चुप्पी – जवाब अभी पेंडिंग
- दमोह कलेक्टर सुधीर कोचर: “जांच पूरी होने के बाद ही कुछ कहेंगे।”
- सीएमएचओ मुकेश जैन: “मामला गोपनीय है, कुछ नहीं कहा जा सकता।”
- अस्पताल प्रबंधक पुष्पा खरे: “गलत आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, ये सही नहीं है।”
अब सवाल जनता के हैं:
- एक फर्जी डॉक्टर इतने महीनों तक कैसे काम करता रहा?
- सरकारी योजना का पैसा किसने पास कराया?
- मरीजों की जान की जिम्मेदारी कौन लेगा?
निष्कर्ष:
यह मामला मेडिकल एथिक्स और सरकारी निगरानी व्यवस्था की बड़ी असफलता को उजागर करता है। दमोह का यह स्कैंडल न सिर्फ मरीजों के जीवन के साथ धोखा है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि आखिर चिकित्सा व्यवस्था की निगरानी कहां चूक गई?
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