सरकारी स्कूलों में गूंजेंगी ढोल-दमाऊ और मशकबीन की धुन
देहरादून: अब उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के साथ-साथ संस्कृति की भी झलक देखने को मिलेगी। राज्य के शिक्षा विभाग ने एक नई पहल करते हुए स्थानीय लोक संस्कृति, लोक वाद्य यंत्रों और पारंपरिक कला को विद्यालयों में पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया है। इस योजना का उद्देश्य शिक्षा के साथ-साथ बच्चों में सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।
12 जनपदों में होंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम
राज्य के 12 जनपदों में ढोल, दमाऊ, मशकबीन जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की गूंज सुनाई देगी। बच्चों को इन वाद्य यंत्रों के माध्यम से अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए लोक कलाकारों और प्रशिक्षकों को स्कूलों में बुलाया जाएगा। यह कार्यक्रम नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने की दिशा में एक रचनात्मक प्रयास है।
शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता से जुड़ा जेडीआर-एनयूआर में सुधार
शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने बताया कि राज्य की शिक्षा प्रणाली में निरंतर सुधार देखने को मिल रहा है। जीडीआर (ग्रॉस ड्रॉपआउट रेट) में गिरावट और एनयूआर (नेट अपग्रेडेशन रेट) में वृद्धि हुई है, जो शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर दिशा में ले जा रहे हैं। इसका श्रेय विद्यालयों में चलाए जा रहे अभिनव कार्यक्रमों और सांस्कृतिक गतिविधियों को भी दिया जा सकता है।
हर स्कूल में होगा अप्रत्यक्ष मूल्यांकन
शिक्षा विभाग ने यह भी तय किया है कि सभी सरकारी स्कूलों में अप्रत्यक्ष मूल्यांकन (Indirect Assessment) की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। इससे छात्रों की शैक्षणिक समझ और व्यक्तित्व विकास का समग्र मूल्यांकन किया जाएगा। मूल्यांकन के लिए गतिविधियों, संवाद, प्रस्तुतियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का उपयोग किया जाएगा।
इस पहल से बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ नाटक, लोक गीत, नृत्य, अभिनय आदि क्षेत्रों में भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलेगा।
निष्कर्ष:
सरकारी स्कूलों में ढोल-दमाऊ की गूंज और मशकबीन की धुन न केवल शैक्षणिक वातावरण को जीवंत बनाएगी, बल्कि बच्चों को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने में भी सहायक होगी। शिक्षा को समग्र, रचनात्मक और आनंददायक बनाने की दिशा में यह एक अनूठा और सराहनीय प्रयास है।
SARKARIKALAM