यूपीएस, एनपीएस और ओपीएस में क्या है अंतर?
Updated on: अप्रैल 2025 | Category: सरकारी योजनाएं
पेंशन स्कीम्स को लेकर सरकार का बड़ा फैसला
सरकारी कर्मचारियों के बीच नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) को लेकर चल रही नाराजगी को देखते हुए सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की शुरुआत की है। साथ ही अब यह बहस ज़ोरों पर है कि कौन-सी पेंशन स्कीम कर्मचारियों के लिए बेहतर है – यूपीएस, एनपीएस या ओपीएस?
आइए जानते हैं इन तीनों स्कीमों के फीचर्स और इनके बीच के महत्वपूर्ण अंतर।
यूपीएस (Unified Pension Scheme) के फीचर्स
- यूपीएस के तहत सुनिश्चित पेंशन का प्रावधान किया गया है।
- केंद्र सरकार के हर कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद अंतिम 12 महीने के औसत वेतन और महंगाई भत्ते का योग, यानी 50% निश्चित पेंशन दी जाएगी।
- इसमें एनपीएस का प्रबंधन सिस्टम जैसे पीएफआरडीए, एनएसडीएल, फंड मैनेजर आदि बरकरार रहेंगे।
- कर्मचारी की बेसिक सैलरी और डीए का 18.5% योगदान सरकार देगी।
एनपीएस (National Pension System) के फीचर्स
- एनपीएस की शुरुआत जनवरी 2004 में हुई थी, और यह सरकारी व निजी दोनों क्षेत्रों के लिए खुला है।
- यह एक कंट्रीब्यूटरी स्कीम है – जिसमें कर्मचारी और सरकार दोनों योगदान देते हैं।
- कर्मचारी का 10% वेतन और सरकार का 14% योगदान होता है।
- एनपीएस में दो खाते होते हैं – टियर-1 और टियर-2। टियर-1 रिटायरमेंट के लिए अनिवार्य होता है।
- 60 वर्ष की आयु के बाद 60% रकम निकाल सकते हैं और शेष 40% से एन्युइटी खरीदनी होती है।
- यह स्कीम बाजार से जुड़ी होती है, इस कारण पेंशन की राशि तय नहीं होती।
ओपीएस (Old Pension Scheme) के फीचर्स
- ओपीएस में कर्मचारी को पेंशन के लिए योगदान नहीं देना पड़ता था।
- रिटायरमेंट के समय अंतिम वेतन का 50% पेंशन के रूप में दिया जाता था।
- महंगाई के अनुसार डीए की सुविधा आजीवन मिलती थी।
- पेंशन कर्मचारी और उसके परिवार के लिए सुनिश्चित रहती थी।
- हालांकि यह स्कीम सरकार पर वित्तीय बोझ डालती थी और इसे बंद कर दिया गया।
निष्कर्ष: कौन सी स्कीम है बेहतर?
ओपीएस कर्मचारियों के लिए सबसे सुरक्षित थी लेकिन यह सरकार के लिए वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं थी।
एनपीएस पूरी तरह मार्केट आधारित है, इसमें पेंशन की कोई गारंटी नहीं है, लेकिन यह निवेश के विकल्प देता है।
वहीं, यूपीएस ने दोनों स्कीमों की खूबियों को मिलाकर निश्चित पेंशन और आधुनिक प्रबंधन की सुविधा दी है।
सरकार की यह नई पहल भविष्य की सामाजिक सुरक्षा के लिए एक मजबूत कदम साबित हो सकती है।