सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर लगाई रोक – न्यायपालिका की संवेदनशीलता पर उठे सवाल
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, हाईकोर्ट के जज की टिप्पणी को बताया अमानवीय
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस राममनोहर नारायण मिश्रा की उस टिप्पणी पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि “महिला के निजी अंगों को पकड़ने और नाड़ा खोलने की कोशिश को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।” शीर्ष अदालत ने इसे संवेदनहीन और अमानवीय करार देते हुए गंभीर चिंता व्यक्त की है।
⚖️ न्यायपालिका की जिम्मेदारी और सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च के आदेश के पैराग्राफ 21, 24 और 26 पर विशेष रूप से आपत्ति जताई।
पीठ ने कहा,
“आमतौर पर हम इस स्तर पर रोक नहीं लगाते, लेकिन यह टिप्पणियां पूरी तरह असंवेदनशील और कानून के सिद्धांतों के विपरीत हैं।”
इसका सीधा मतलब यह है कि अब इन विवादास्पद टिप्पणियों का उपयोग किसी आरोपी को राहत देने के लिए नहीं किया जा सकेगा।
📌 क्या था पूरा मामला?
यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले से जुड़ा है, जहां पवन और आकाश नामक दो आरोपियों पर नाबालिग लड़की के निजी अंगों को पकड़ने, उसके पायजामे का नाड़ा खोलने और पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करने का आरोप था।
➡️ ट्रायल कोर्ट ने दोनों आरोपियों को दुष्कर्म और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत समन जारी किया था।
➡️ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह अपराध दुष्कर्म की परिभाषा में नहीं आता, बल्कि यह गंभीर यौन हमले का एक कम गंभीर अपराध है।
🔥 सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को बताया असंवेदनशील
सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई।
जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा:
“हमें जज के खिलाफ कठोर शब्दों का प्रयोग करने का खेद है, लेकिन यह संवेदनहीनता का मामला है।”
पीठ ने स्पष्ट किया कि:
✅ यह आदेश किसी क्षणिक आवेग में नहीं दिया गया था, बल्कि इसे नवंबर 2023 में सुरक्षित रखा गया था।
✅ हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता पर सवाल उठते हैं।
✅ 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विस्तृत सुनवाई करेगा।
🚨 केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से जवाब तलब
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट के सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया गया है कि वे इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को तुरंत भेजें और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से उचित कदम उठाने के लिए कहें।
🔴 महिलाओं की सुरक्षा और न्यायपालिका की भूमिका
इस फैसले ने एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा और भारतीय न्यायपालिका की भूमिका पर बहस छेड़ दी है।
✅ यह मामला दिखाता है कि यौन अपराधों पर न्यायिक टिप्पणियां कितनी प्रभावशाली होती हैं।
✅ संवेदनहीन टिप्पणियां न केवल पीड़िता के लिए दर्दनाक होती हैं, बल्कि समाज में गलत संदेश भी भेजती हैं।
✅ सुप्रीम कोर्ट का यह कदम महिला सुरक्षा की दिशा में एक सकारात्मक संकेत माना जा सकता है।
🔎 निष्कर्ष: न्याय और संवेदनशीलता का संतुलन आवश्यक
➡️ न्यायपालिका पर जनता की आस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है कि न्यायाधीश संवेदनशीलता के साथ निर्णय लें।
➡️ सुप्रीम कोर्ट की यह कार्रवाई दर्शाती है कि किसी भी असंवेदनशील टिप्पणी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
➡️ 15 अप्रैल को होने वाली सुनवाई इस मामले के भविष्य की दिशा तय करेगी।
🔹 इस मामले पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट में बताएं!
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