महिला सहकर्मी के बालों पर टिप्पणी यौन उत्पीड़न नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा कि किसी महिला सहकर्मी के बालों पर टिप्पणी करना या उसके बारे में गीत गाना कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता। इस फैसले से एचडीएफसी बैंक, पुणे के एसोसिएट क्षेत्रीय प्रबंधक विनोद कछावे को राहत मिली है, जिन्हें बैंक की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ने दोषी ठहराया था।
क्या है मामला?
एचडीएफसी बैंक की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ने विनोद कछावे को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत दोषी पाया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने महिला सहकर्मी के बालों को लेकर टिप्पणी की और उसके बारे में गीत गाया।
हालांकि, जस्टिस संदीप मार्ने की अगुवाई वाली बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि अगर इन आरोपों को सही भी माना जाए, तब भी इसे यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता, जिससे यह साबित हो कि यह यौन उत्पीड़न का मामला है।
बचाव पक्ष की दलील
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि कछावे ने सिर्फ मजाक में महिला सहकर्मी से कहा था कि वह बाल संवारने के लिए जेसीबी मशीन का इस्तेमाल कर रही होगी। इसे यौन उत्पीड़न के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
भारतीय न्याय संहिता (IPC) क्या कहती है?
भारतीय न्याय संहिता (IPC) की धारा 75 के तहत निम्नलिखित कृत्य यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आते हैं:
✅ किसी महिला को बिना अनुमति के छूना।
✅ जानबूझकर महिला के शरीर पर हाथ फेरना।
✅ महिला का पीछा करना और उसे असहज महसूस कराना।
✅ महिला के बारे में अश्लील बातें फैलाना या अफवाहें बनाना।
✅ महिला के शरीर को घूरना या गलत नजरों से देखना।
✅ किसी महिला को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करना।
लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ किया कि महिला सहकर्मी के बालों पर मजाकिया टिप्पणी करना या उसके बारे में गीत गाना इन अपराधों की श्रेणी में नहीं आता।
कोर्ट का फैसला: राहत क्यों मिली?
▶️ कोर्ट ने पाया कि महिला सहकर्मी के आरोप सीधे यौन उत्पीड़न की परिभाषा में फिट नहीं बैठते।
▶️ आंतरिक शिकायत समिति (ICC) के फैसले में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं मिला।
▶️ कछावे के खिलाफ कोई ऐसा सबूत नहीं मिला, जिससे यह साबित हो कि उनके शब्दों का मकसद महिला को मानसिक रूप से परेशान करना या कार्यस्थल पर असहज महसूस कराना था।
▶️ इसलिए कोर्ट ने एचडीएफसी बैंक के फैसले को खारिज करते हुए कछावे को राहत दी।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले से यह साफ हुआ कि हर मजाक या टिप्पणी यौन उत्पीड़न नहीं मानी जा सकती। हालांकि, कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी है। यह मामला यौन उत्पीड़न के दायरे की व्याख्या को लेकर एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।
क्या आपको लगता है कि इस फैसले से कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा पर असर पड़ेगा? कमेंट में अपनी राय बताएं!
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