दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पढ़ी-लिखी और सक्षम महिलाओं को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता!
📢 दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि कोई महिला शिक्षित और आत्मनिर्भर बनने में सक्षम है, तो उसे अंतरिम गुजारा भत्ता की मांग नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें उसने CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग की थी।
⚖️ पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए भरण-पोषण क्यों नहीं?
जस्टिस चंद्रधारी सिंह की एकल पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 125 का असली उद्देश्य वित्तीय सुरक्षा देना है, लेकिन यह निष्क्रियता को बढ़ावा देने के लिए नहीं है।
🔹 योग्यता के बावजूद महिला द्वारा कार्य न करने पर कोर्ट ने सवाल उठाए।
🔹 महिला ऑस्ट्रेलिया से मास्टर डिग्री हासिल कर चुकी है और शादी से पहले दुबई में अच्छी कमाई कर रही थी।
🔹 कोर्ट ने कहा कि वह यह समझने में असमर्थ है कि सक्षम और शिक्षित होने के बावजूद महिला भारत लौटने के बाद निष्क्रिय क्यों बैठी रही।
🔹 महिला ने दावा किया कि वह बेरोजगार है और उसकी कोई आय नहीं है, लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया।
💼 पति की दलील: कानून का दुरुपयोग हो रहा है!
पति की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि:
✅ पत्नी उच्च शिक्षित है और कमाने में सक्षम है।
✅ सिर्फ बेरोजगारी के आधार पर भरण-पोषण का दावा नहीं किया जा सकता।
✅ कानून का उद्देश्य सहायता देना है, मुफ्त में निर्भरता बढ़ाना नहीं।
📌 हाईकोर्ट का कड़ा संदेश
🚫 अगर कोई महिला अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम है, तो उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए।
🚫 अदालत ने निष्क्रिय रहने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया।
🚫 निचली अदालत द्वारा भरण-पोषण याचिका खारिज करने के फैसले को सही ठहराया।
📢 इस फैसले से यह साफ हो गया कि शिक्षित और आत्मनिर्भर बनने में सक्षम महिलाओं को भरण-पोषण पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि खुद के लिए कमाने के रास्ते खोजने चाहिए।
🌟 निष्कर्ष: आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ें!
💡 यह फैसला उन महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो सक्षम होने के बावजूद भरण-पोषण का सहारा लेती हैं।
💡 यदि कोई महिला शिक्षित और कमाने में सक्षम है, तो उसे आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
💡 कानून की मंशा जरूरतमंदों की मदद करना है, न कि निष्क्रियता को बढ़ावा देना।
📢 आप इस फैसले के बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय कमेंट में बताएं! 💬
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