मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला: माता-पिता की देखभाल न करने पर गिफ्ट डीड हो सकती है रद्द ⚖️🏠

मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला: माता-पिता की देखभाल न करने पर गिफ्ट डीड हो सकती है रद्द ⚖️🏠

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📌 मद्रास हाईकोर्ट ने माता-पिता के अधिकारों को लेकर सुनाया बड़ा फैसला

मद्रास हाईकोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों की संपत्ति सुरक्षा को लेकर एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि बच्चे या निकट संबंधी माता-पिता की देखभाल करने में विफल रहते हैं, तो माता-पिता अपनी दी हुई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद्द कर सकते हैं, भले ही गिफ्ट डीड में इसे लेकर कोई शर्त न लिखी गई हो

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🔹 यह फैसला जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस के राजशेखर की पीठ ने दिया
🔹 वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23 (1) के तहत यह अधिकार दिया गया है।


⚖️ क्या था मामला?

✅ मृतक एस. नागलक्ष्मी ने अपने बेटे केशवन के नाम संपत्ति की गिफ्ट डीड इस शर्त पर बनाई थी कि बेटा और बहू जीवनभर उनकी देखभाल करेंगे
✅ लेकिन बेटे की मृत्यु के बाद बहू एस. माला ने भी उनकी उपेक्षा की
✅ मजबूरी में नागलक्ष्मी ने आरडीओ, नागपट्टिनम से संपर्क कर गिफ्ट डीड रद्द करने का अनुरोध किया
✅ आरडीओ ने बहू की दलीलों को खारिज करते हुए गिफ्ट डीड रद्द कर दी।
बहू ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी।


🔍 हाईकोर्ट का तर्क

🔸 गिफ्ट डीड भले ही बिना किसी शर्त के दी गई हो, लेकिन माता-पिता की देखभाल एक नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है।
🔸 यदि प्राप्तकर्ता (बच्चा या निकट संबंधी) इस दायित्व को पूरा नहीं करता है, तो संपत्ति हस्तांतरण को रद्द किया जा सकता है।
🔸 वरिष्ठ नागरिकों के संरक्षण के लिए 2007 का कानून उन्हें यह अधिकार देता है कि वे अपनी संपत्ति वापस ले सकें, यदि उनकी देखभाल नहीं की जा रही हो।


📢 फैसले का असर और निष्कर्ष

👉 यह फैसला उन बुजुर्ग माता-पिता के लिए राहतभरा है, जो अपने बच्चों को संपत्ति देकर उनके सहारे जीवन बिताने की उम्मीद रखते हैं।
👉 बुजुर्गों की देखभाल अब सिर्फ नैतिक नहीं, बल्कि कानूनी जिम्मेदारी भी बन गई है।
👉 अगर कोई संतान या निकट संबंधी बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा करता है, तो वह उनकी दी हुई संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता।

📌 क्या आपको लगता है कि यह फैसला बुजुर्गों के लिए सही कदम है? अपनी राय नीचे कमेंट में दें! ⬇️

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