इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से साफ हो गया है कि मात्र चयनित होने से किसी को भर्ती का अधिकार नहीं मिल जाता, बल्कि इसके लिए समयसीमा के भीतर पूरी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। टीजीटी-2013 भर्ती मामले में अवशेष पैनल में चयनित उम्मीदवारों की याचिका खारिज कर कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया की समयसीमा की अहमियत को रेखांकित किया है।
टीजीटी-2013 भर्ती मामले में हाईकोर्ट का फैसला:
- 2013 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने टीजीटी भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था।
- बाद में रिक्त पदों की संख्या घटा दी गई, जिससे कई उम्मीदवारों को नियुक्ति नहीं मिल सकी।
- 2019 में अवशेष पैनल जारी हुआ, जिसमें से 860 उम्मीदवारों को नियुक्ति मिली, लेकिन 307 उम्मीदवारों को नहीं।
- इन 307 उम्मीदवारों ने नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
- कोर्ट ने कहा कि भर्ती अनिश्चितकाल तक खुली नहीं रह सकती, और इतने लंबे समय बाद नियुक्ति का आदेश देना न्यायसंगत नहीं होगा।
- नतीजा: याचिका खारिज।
भर्ती मामलों में कोर्ट के इस निर्णय का प्रभाव:
- भर्ती प्रक्रिया की समयसीमा को महत्व मिलेगा।
- अवशेष पैनल में चयनित उम्मीदवारों के लिए कानूनी सहारा सीमित रहेगा।
- भर्ती प्रक्रिया में देरी के मामलों में सरकार और चयन बोर्ड को स्पष्ट नियम बनाने होंगे।
अन्य हाईकोर्ट फैसले:
- दुष्कर्म के आरोपी को शादी की शर्त पर जमानत:
- हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर पीड़िता से विवाह करना होगा, अन्यथा जमानत रद्द हो सकती है।
- मऊ के एडीएम को अवमानना नोटिस:
- अधिगृहीत भूमि का मुआवजा न देने पर एडीएम सत्यप्रिय सिंह को अवमानना नोटिस जारी।
- भदोही ऊलेन मिल के कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना पर विचार:
- कोर्ट ने कहा कि समायोजन में देरी कर्मचारियों की गलती नहीं थी, इसलिए उन्हें पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलना चाहिए।
निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसलों में नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता, समयसीमा और कानूनी बाध्यताओं पर जोर दिया है। इससे सरकारी भर्तियों और प्रशासनिक फैसलों में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।