अपराधी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध उचित नहीं: केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करना उचित नहीं है। सरकार ने हलफनामे में कहा कि यह निर्णय पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है, और अदालत को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि गंभीर आपराधिक मामलों में दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
हालांकि, केंद्र सरकार ने इस पर सहमति नहीं जताई और कहा कि अयोग्यता की अवधि विधायी नीति का विषय है, जिसे संसद द्वारा तय किया जाना चाहिए, न कि न्यायपालिका द्वारा।
केंद्र सरकार का पक्ष
- अयोग्यता की अवधि सीमित होनी चाहिए
सरकार ने दलील दी कि कानून का स्थापित सिद्धांत यह है कि दंड या तो समय या मात्रा के अनुसार निर्धारित होते हैं। इसलिए, अयोग्यता की अवधि को सीमित रखना अधिक न्यायसंगत होगा। - अदालत संसद को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती
केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट संसद को यह निर्देश नहीं दे सकता कि वह किस तरह का कानून बनाए। - अनुच्छेद 102 और 191 का गलत उल्लेख
सरकार ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 का उल्लेख गलत है। ये अनुच्छेद संसद और विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्यता से संबंधित हैं, और इन्हीं के आधार पर 1951 का जनप्रतिनिधित्व अधिनियम बनाया गया था।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 क्या हैं?
- धारा 8: यदि किसी व्यक्ति को कुछ विशेष अपराधों में दोषी ठहराया जाता है, तो सजा पूरी होने के बाद 6 साल तक वह चुनाव नहीं लड़ सकता।
- धारा 9: यदि किसी लोकसेवक को भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के आधार पर बर्खास्त किया जाता है, तो 5 साल तक उसे चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाता है।
याचिकाकर्ता का कहना था कि यह प्रतिबंध पर्याप्त नहीं है और दोषी नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने का प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी को सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि “यदि कोई व्यक्ति आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जा चुका है, तो वह संसद में कैसे लौट सकता है?”
- जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने यह सवाल उठाया और केंद्र सरकार तथा चुनाव आयोग से तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा।
- पीठ ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार या निष्ठाहीनता के दोषी सरकारी कर्मचारी को सेवा के लिए अयोग्य माना जाता है, तो वह मंत्री कैसे बन सकता है?
भ्रष्ट नेताओं को संसद में आने से रोकने की जरूरत?
यह मामला भारत में राजनीति के अपराधीकरण से जुड़ा है। चुनाव सुधारों की मांग करने वाले लोगों का तर्क है कि भ्रष्टाचार और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
- ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के अनुसार, लोकसभा के 225 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि “हितों का टकराव स्पष्ट है,” यानी नेता खुद अपने खिलाफ कड़े कानून नहीं बनाएंगे।
अगला कदम क्या हो सकता है?
अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय देती है। यह मामला राजनीतिक शुचिता और कानूनी संतुलन के बीच का मुद्दा है।
- यदि कोर्ट याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला देती है, तो दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लग सकता है।
- अगर कोर्ट केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला देती है, तो मौजूदा कानून जारी रहेगा।
भारत में स्वच्छ राजनीति के लिए यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।