नर्सिंग छात्रा प्रीति सरोज की आत्महत्या: मानसिक प्रताड़ना और स्वास्थ्य समस्याओं का दर्दनाक अंत

नर्सिंग छात्रा प्रीति सरोज की आत्महत्या: मानसिक प्रताड़ना और स्वास्थ्य समस्याओं का दर्दनाक अंत

प्रयागराज: एसआरएन अस्पताल स्थित नर्सिंग हॉस्टल में एक दर्दनाक घटना सामने आई, जहां जीएनएम प्रथम वर्ष की छात्रा प्रीति सरोज (20) ने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। उसके द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट ने न केवल उसके मानसिक संघर्ष को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि स्वास्थ्य समस्याओं और सामाजिक उपेक्षा ने उसे कितना तोड़ दिया था।


स्वास्थ्य समस्याओं से था संघर्ष

प्रीति सरोज कान की समस्या और पूरे शरीर में खुजली की बीमारी से लंबे समय से परेशान थी। उसकी परेशानी इतनी बढ़ गई थी कि उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा,
“भगवान ने बहुत दुख दिया है, अब और नहीं झेल सकती।”

यह स्पष्ट करता है कि वह अपने स्वास्थ्य को लेकर मानसिक और शारीरिक रूप से बेहद कमजोर महसूस कर रही थी।


घटना के दिन क्या हुआ?

प्रीति प्रयागराज के एसआरएन अस्पताल नर्सिंग हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी। घटना वाले दिन, हॉस्टल की चार छात्राएं महाशिवरात्रि के लिए बाहर गई थीं, और एक सहेली उसके साथ थी।

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सुबह 10 बजे, उसने अपनी सहेली से कहा कि उसे पूरे शरीर में दवा लगानी है और वह थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाए। सहेली कपड़े सुखाने के लिए छत पर चली गई। 15 मिनट बाद जब वह लौटी, तो दरवाजा अंदर से बंद था।

बार-बार आवाज लगाने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो हॉस्टल प्रबंधन को सूचना दी गई। जब दरवाजा तोड़ा गया, तो प्रीति पंखे से लटकी हुई थी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।


परिवार का दावा: मानसिक प्रताड़ना ने छीनी बेटी की जान

प्रीति के चचेरे भाई अनुज सरोज ने आरोप लगाया कि उसके कम सुनने की समस्या को लेकर उसकी सहेलियां मजाक उड़ाती थीं और उसे ताने मारती थीं। परिवार का कहना है कि यह प्रताड़ना ही उसकी मौत का कारण बनी।

उसकी मां शांति देवी फफक-फफक कर रो पड़ीं और कहा,
“बेटी, तुमने तो हमें गरीबी से लड़ना सिखाया था, फिर खुद ही हार क्यों गई?”

परिवार बेहद गरीब था, लेकिन प्रीति की पढ़ाई अच्छी थी। उन्हें उम्मीद थी कि वह डॉक्टर बनेगी और परिवार की स्थिति बदलेगी, लेकिन उसका सपना अधूरा रह गया।


सुसाइड नोट में अधूरे सपनों का दर्द

प्रीति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा:
“मैं डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन अब यह सपना अधूरा रह गया। यह बीमारी अब और नहीं झेली जा सकती। मम्मी-पापा, मुझे माफ कर देना।”

उसके पिता शत्रुधन सरोज, जो एक राजमिस्त्री हैं, बेटी की मौत से सदमे में हैं। उन्होंने बताया कि 12 फरवरी को प्रीति की कान की समस्या ज्यादा बढ़ गई थी, इसलिए वे उसे घर ले गए थे। 23 फरवरी को वह हॉस्टल लौटी थी।


कॉलेज प्रशासन और पुलिस ने शुरू की जांच

मेडिकल कॉलेज प्रशासन और पुलिस दोनों इस मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं।

प्रशासन के बयान:

प्रिंसिपल डॉ. वत्सला मिश्रा ने कहा,
“हम आत्महत्या के कारणों की अनदेखी नहीं करेंगे। कॉलेज प्रशासन ने भी आंतरिक जांच शुरू कर दी है।”

पुलिस की कार्रवाई:

कोतवाली थाना प्रभारी रंगीत तिवारी ने कहा कि,
“सुसाइड नोट की जांच की जा रही है। साथ ही, मानसिक प्रताड़ना के आरोपों की भी पड़ताल की जाएगी।”


आखिरी सवाल: क्या हमारी संवेदनहीनता भी जिम्मेदार है?

इस घटना ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है – क्या समाज मानसिक स्वास्थ्य और बीमारियों को गंभीरता से लेता है?

  • क्या यदि प्रीति की बीमारी को मजाक में न लिया जाता, तो वह आज जिंदा होती?
  • क्या अगर उसके दोस्त और कॉलेज प्रशासन उसकी मानसिक स्थिति को समझते, तो यह हादसा टल सकता था?

आज जरूरत है कि मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए और छात्रों की समस्याओं को संवेदनशीलता से सुना जाए।

समाज को सीखने की जरूरत:

  • किसी की शारीरिक या मानसिक कमजोरी का मजाक उड़ाना उसे मानसिक रूप से तोड़ सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग को शिक्षण संस्थानों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
  • बीमारियों को कलंक न माना जाए, बल्कि उनके समाधान की कोशिश की जाए।

अगर समाज थोड़ा संवेदनशील होता, तो शायद आज प्रीति सरोज जिंदा होती।

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