बदल जाएगा कॉलेज शिक्षकों की नियुक्ति का कायदा




एनईपी 2020: यूजीसी के नए नियम और एपीआई प्रणाली में बदलाव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के प्रावधानों को लागू करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने नए नियमों को तेजी से लागू करने का फैसला किया है। इसके लिए एक अभिनव तरीका अपनाया गया है – जटिल मुद्दों पर ऑनलाइन फीडबैक मंगाना। इन नियमों में सबसे ताजा बदलाव है शिक्षकों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता व पात्रता शर्तों का मसौदा

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क्या है एपीआई प्रणाली?

शैक्षणिक प्रदर्शन संकेतक (एपीआई) प्रणाली का उद्देश्य शिक्षकों के लिए आवश्यक योग्यता, शिक्षण अनुभव, शोध कार्य और अन्य शैक्षणिक योगदान को मापना है। इसकी शुरुआत 2010 में हुई थी और इसका उपयोग भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने सबसे पहले किया था।

एपीआई प्रणाली क्यों शुरू की गई?

यूजीसी ने शिक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर शिक्षकों के लिए वेतनमान तय करने के प्रयास में यह प्रणाली विकसित की थी, ताकि वस्तुनिष्ठता और पारदर्शिता आए। इस प्रणाली के तहत:

  • सहायक प्रोफेसर के वेतनमान में बढ़ोतरी और उच्च पदों पर पदोन्नति के लिए न्यूनतम एपीआई स्कोर जरूरी था।
  • साक्षात्कार में केवल डोमेन ज्ञान का आकलन किया जाता था।
  • यह प्रणाली भेदभाव, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार को कम करने के लिए बनाई गई थी।

एपीआई प्रणाली को खत्म करने का कदम

यूजीसी ने अब एपीआई प्रणाली को खत्म करने का निर्णय लिया है। इसके स्थान पर नियुक्ति और पदोन्नति के फैसले चयन समिति के विवेकाधीन होंगे। यह बदलाव विवादास्पद है क्योंकि:

  • यह वस्तुनिष्ठता के बजाय व्यक्तिपरकता को बढ़ावा दे सकता है।
  • इतिहास गवाह है कि विवेकाधीन शक्ति का दुरुपयोग हुआ है, जिससे भेदभाव और पक्षपात की आशंका बढ़ जाती है।

नई योग्यताएं और संभावित चुनौतियां

नई प्रणाली में नौ नई योग्यताएं पेश की गई हैं, जैसे:

  • अभिनव शिक्षण योगदान
  • अनुसंधान या शिक्षण प्रयोगशाला विकास
  • भारतीय भाषाओं में शिक्षण योगदान
  • स्टार्टअप और सामुदायिक सेवा

हालांकि, इन योग्यताओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है, क्योंकि शिक्षण या अनुसंधान पर सीमित प्रभाव डालने वाली ये योग्यताएं मूलभूत कर्तव्यों से ध्यान भटका सकती हैं।

निष्कर्ष

यूजीसी द्वारा एपीआई प्रणाली को खत्म करने और नई योग्यताओं को शामिल करने के फैसले ने शिक्षण समुदाय में विवाद और चिंताएं पैदा कर दी हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि विवेकाधीन चयन प्रक्रिया किस हद तक पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखती है।

🔍 क्या आप इस बदलाव से सहमत हैं? अपनी राय हमें कमेंट सेक्शन में बताएं!

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