हाईकोर्ट ने कहा, शिक्षक की प्रोबेशन अवधि वरिष्ठता में बाधक नहीं
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि किसी भी शिक्षक की वरिष्ठता (Seniority) निर्धारित करने में प्रोबेशन अवधि (Probation Period) बाधक नहीं होती। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई कर्मचारी प्रोबेशन अवधि पूरी कर लेता है, तो उसे मूल नियुक्ति तिथि से ही नियमित माना जाएगा।
कोर्ट ने बालेश्वर दास केस का दिया हवाला
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने इस फैसले में बालेश्वर दास केस का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रोबेशन पूरा करने के बाद कर्मचारी की वरिष्ठता उसकी मूल नियुक्ति तिथि से मानी जाएगी। कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
क्या था पूरा मामला?
याची ने वरिष्ठता का दावा किया
बदायूं के कुंवर रूकुम सिंह वैदिक इंटर कॉलेज में डॉ. योगेंद्र पाल को 13 सितंबर 1998 को लेक्चरर पद पर प्रोन्नत किया गया था। जबकि विपक्षी शिक्षक रजनीश कुमार को 20 अप्रैल 1998 से एक साल के प्रोबेशन पर नियुक्त किया गया था।
प्रोबेशन अवधि पूरी होने के बाद क्या हुआ?
रजनीश कुमार की प्रोबेशन अवधि 19 अप्रैल 1999 को पूरी हुई। इसके बाद डॉ. योगेंद्र पाल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया कि वे रजनीश कुमार से वरिष्ठ हैं। उन्होंने वरिष्ठता के आधार पर कार्यवाहक प्रधानाचार्य बनाए जाने की मांग की थी।
विपक्षी शिक्षक ने क्या कहा?
रजनीश कुमार के अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि प्रोबेशन अवधि वरिष्ठता का निर्धारण करने में बाधक नहीं होती। जब एक कर्मचारी प्रोबेशन पूरा कर लेता है, तो उसकी नियुक्ति मूल तिथि से मानी जाती है।
हाईकोर्ट का फैसला
कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि रजनीश कुमार की नियुक्ति 20 अप्रैल 1998 को हुई थी, जबकि याची की नियुक्ति 13 सितंबर 1998 को हुई। इसलिए विपक्षी शिक्षक वरिष्ठ हैं।
इस आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और साफ किया कि प्रोबेशन अवधि समाप्त होने के बाद मूल नियुक्ति तिथि से ही वरिष्ठता तय होगी।
इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा?
- अब सरकारी और निजी विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों के लिए वरिष्ठता तय करने में प्रोबेशन अवधि बाधा नहीं बनेगी।
- इस फैसले से उन शिक्षकों को लाभ मिलेगा, जिनकी नियुक्ति पहले हुई, लेकिन प्रोबेशन अवधि की वजह से उनकी वरिष्ठता प्रभावित होती थी।
- शिक्षा विभाग में पदोन्नति (Promotion) और प्रशासनिक नियुक्तियों के मामलों में यह निर्णय नजीर बनेगा।
शिक्षा जगत से जुड़े लोगों के लिए यह फैसला काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे वरिष्ठता को लेकर चल रहे विवादों पर अब कानूनी स्थिति और स्पष्ट हो गई है।