विश्वविद्यालय में गलत नियुक्ति की जांच का अधिकार राज्य सरकार को नहीं : हाईकोर्ट
लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बिमल जायसवाल को राहत देते हुए उनके खिलाफ गलत नियुक्ति की
जांच में राज्य सरकार को रोक दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को विश्वविद्यालय में नियुक्तियों की जांच करने का अधिकार नहीं है।
⚖️ अदालत का आदेश और मामला
न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की पीठ ने सोमवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए प्रोफेसर बिमल जायसवाल की याचिका पर यह आदेश दिया। याचिका में
कहा गया था कि राज्य सरकार ने 8 जनवरी 2025 को उनके खिलाफ चार सदस्यीय एक जांच समिति का गठन किया और उसे 15 दिनों में रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे।
❌ राज्य सरकार को जांच का अधिकार नहीं
प्रोफेसर बिमल जायसवाल के अधिवक्ता ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार को विश्वविद्यालय की नियुक्तियों की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद
अदालत ने राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी। वहीं, सरकारी अधिवक्ता ने विरोध करते हुए अदालत को बताया कि प्रोफेसर बिमल कुमार की नियुक्ति नान क्रीमीलेयर
श्रेणी में की गई थी, जबकि उनके पिता भी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। ऐसे में एक प्रोफेसर के बेटे को नान क्रीमीलेयर श्रेणी में नियुक्ति देना गलत था।
🔍 मामले की जांच अब सक्षम अधिकारी से होगी
अदालत ने इस मामले की जांच के लिए सक्षम अधिकारी से कराने की अनुमति दी है। अब राज्य सरकार को विश्वविद्यालय की नियुक्ति में किसी प्रकार की जांच करने का
अधिकार नहीं होगा, और यह कार्य उचित अधिकारियों के माध्यम से किया जाएगा।
🏛️ न्याय की राह में अहम कदम
इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार विश्वविद्यालयों के मामलों में दखल नहीं दे सकती। अदालत ने नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता और
निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सही अधिकारी के जरिए मामले की जांच कराने का निर्णय लिया।