तथ्य छिपाकर प्राप्त की गई अनुकंपा नियुक्ति अवैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि तथ्य छिपाकर प्राप्त की गई अनुकंपा नियुक्ति अवैध है। कोर्ट ने कहा कि यह तरीका न केवल गलत है, बल्कि यह अनुकंपा नियुक्ति के मूल उद्देश्य को भी विफल करता है। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ बुलंदशहर के शिवदत्त शर्मा की विशेष अपील को खारिज कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया।
मामले का विवरण
याची शिवदत्त शर्मा के पिता के निधन के बाद, उन्हें 1981 में अनुकंपा के आधार पर चौकीदार के पद पर नियुक्त किया गया था। इसके बाद, विभागीय अनुमति लेकर उन्होंने बीएड में दाखिला लिया। 1986 में, बीएड योग्यता के आधार पर, उन्हें सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त कर दिया गया।
हालांकि, 2019 में यह विवाद सामने आया कि याची ने सहायक शिक्षक पद पाने के लिए अपनी चौकीदार के रूप में हुई पिछली नियुक्ति को छुपाया था। इस मामले में डीआईओएस बुलंदशहर ने याची से स्पष्टीकरण मांगा।
कोर्ट की टिप्पणी
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य, जरूरतमंद परिवारों की सहायता करना है। लेकिन, यदि यह नियुक्ति गलत तरीके से प्राप्त की जाती है, तो यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि वास्तविक जरूरतमंदों के अधिकारों का हनन भी है। कोर्ट ने इस आधार पर याची की विशेष अपील खारिज कर दी।
अन्य महत्वपूर्ण मामला
इसके अतिरिक्त, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ललितपुर जिला जेल से रिटायर डिप्टी जेलर शशिकांत त्रिपाठी के मामले में भी महत्वपूर्ण आदेश दिया। कोर्ट ने अधिक वेतन निर्धारण के कारण हुई वसूली पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे पुनरीक्षित वेतन के अनुसार सेवानिवृत्ति परिलाभ का भुगतान करें।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने याची के अधिवक्ता धनंजय कुमार मिश्र को सुनने के बाद दिया। इसके साथ ही, राज्य सरकार से इस मामले में चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा गया है।