सरकार जातिवार गणना की गुत्थी सुलझाने की कोशिश में






सरकार जातिवार गणना की गुत्थी सुलझाने की कोशिश में

सरकार जातिवार गणना की गुत्थी सुलझाने की कोशिश में

लेखक: SARKARIKALAM| तिथि: 18 जनवरी 2025

वर्ष 2021 की लंबित जनगणना को शुरू करने से पहले, सरकार के सामने जातिवार गणना की जटिल चुनौती खड़ी है। कांग्रेस, जदयू जैसे विपक्षी और सहयोगी दलों द्वारा जातिवार गणना की मांग लगातार जोर पकड़ रही है। हालांकि, सरकार ने अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

WhatsApp Channel Join Now
WhatsApp Group Join Now
Telegram Channel Join Now

2011 की जातिवार गणना के अनुभव

2011 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान सामाजिक, आर्थिक और जातिवार आंकड़े जुटाने की कोशिश की गई थी। लेकिन, इस प्रक्रिया में 46.80 लाख से अधिक जातियां दर्ज की गईं, जो 1931 में दर्ज 4,147 जातियों से कहीं अधिक थीं। इतनी बड़ी संख्या में ओबीसी जातियों की पहचान करना संभव नहीं था। यही वजह है कि उस समय की जातिवार गणना के आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए गए।

जातिवार गणना के समक्ष चुनौतियां

जातिवार गणना कराने में कई तकनीकी और सामाजिक चुनौतियां हैं:

  • जातियों की सटीक पहचान के लिए कोई ठोस फार्मूला उपलब्ध नहीं है।
  • कई लोग अपने सरनेम के बजाय गांव का नाम इस्तेमाल करते हैं, जिससे जाति पहचान में कठिनाई होती है।
  • 2011 में महाराष्ट्र के 10 करोड़ लोगों में से 1.10 करोड़ (11%) ने अपनी जाति बताने से इनकार कर दिया था।
  • जाति बताने का अवसर दिए जाने पर बड़ी संख्या में लोग ओबीसी का दावा कर सकते हैं, जिससे नई समस्याएं खड़ी होंगी।

सर्वदलीय समिति का सुझाव

जातिवार गणना के इस जटिल मुद्दे को हल करने के लिए, सरकार सर्वदलीय समिति गठित करने पर विचार कर रही है। समिति में जातिवार गणना की मांग करने वाले नेताओं और दलों को शामिल किया जा सकता है, ताकि इसका व्यवहारिक और निष्पक्ष समाधान निकाला जा सके।

जनगणना में सरनेम और जाति की भूमिका

जाति की पहचान के लिए सरनेम को एक महत्वपूर्ण आधार माना जाता है। हालांकि, कई बार सरनेम जाति के बजाय गांव का नाम दर्शाता है। उदाहरण के लिए:

  • सुखबीर सिंह बादल का सरनेम उनके गांव का नाम है, जबकि उनकी जाति जट सिख है।
  • पुरुषोत्तम रूपाला का सरनेम उनके गांव का नाम है, जबकि उनकी जाति कड़वा पटेल है।

सरकार की आगे की रणनीति

सरकार का मानना है कि जातिवार गणना कराना बेहद कठिन और संवेदनशील कार्य है। ओबीसी की पहचान और सही आंकड़े जुटाने के लिए सभी पक्षों से सलाह लेना जरूरी है।

संपादकीय: जातिवार गणना की जटिलता और ओबीसी की पहचान के सटीक समाधान के लिए राजनीतिक और सामाजिक सहमति आवश्यक है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top