काम के घंटे: इतिहास, उत्पादकता और वर्तमान स्थिति









काम के घंटे: इतिहास, उत्पादकता और वर्तमान स्थिति

काम के घंटे: 100 साल पहले भी 55 घंटे काम करते थे लोग

सप्ताह में 40 घंटे काम करने पर उत्पादकता रहती है उच्चतम

नई दिल्ली। इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन नारायणमूर्ति और एलएंडटी के चेयरमैन एमएन सुब्रह्यमण्यन के हालिया बयानों के बाद भारत में काम के घंटों पर बहस तेज हो गई है। हालांकि, इतिहास में नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि एक सदी पहले भी लोग सप्ताह में 55 घंटे से अधिक काम नहीं करते थे।

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100 साल पहले कितना काम करते थे लोग?

1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान श्रमिकों ने एक सप्ताह में औसतन 55 घंटे काम किया। हालांकि, सैन्य उपकरणों की मांग के कारण कुछ श्रमिक 72 घंटे तक काम करने को मजबूर थे। इस अत्यधिक कार्य के कारण उनकी उत्पादकता में गिरावट देखी गई।

उत्पादकता और काम के घंटे का संबंध

अध्ययनों से पता चला है कि सप्ताह में 40 घंटे काम करने पर कर्मचारी की उत्पादकता उच्चतम स्तर पर होती है। इससे अधिक घंटे काम करने पर उत्पादकता में कमी आती है, जिसका असर देश की जीडीपी पर भी पड़ता है।

हेनरी फोर्ड और 40 घंटे काम का चलन

फोर्ड मोटर कंपनी के संस्थापक हेनरी फोर्ड ने 1926 में सप्ताह में 40 घंटे काम कराने की शुरुआत की। इससे न केवल श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ी, बल्कि यह चलन विश्व भर में लोकप्रिय हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह मॉडल कई देशों ने अपनाया।

भारत में कार्य घंटे और फैक्टरीज एक्ट

भारत में फैक्टरीज एक्ट 1948 के तहत कंपनियां कर्मचारियों से सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम करा सकती हैं। इसमें प्रतिदिन अधिकतम 9 घंटे का समय तय है। ओवरटाइम के लिए नियमित मेहनताने से दोगुना भुगतान करना होता है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत में कर्मचारी औसतन 46.7 घंटे प्रति सप्ताह काम करते हैं। 51% कर्मचारी हर सप्ताह 49 घंटे या उससे अधिक काम करते हैं।

दुनिया में काम के घंटे की स्थिति

सबसे कम काम के घंटे वाले देश

  • नीदरलैंड: 31.6 घंटे/सप्ताह
  • ऑस्ट्रेलिया: 32.3 घंटे/सप्ताह
  • कनाडा: 32.1 घंटे/सप्ताह

सबसे ज्यादा काम के घंटे वाले देश

  • भारत: 54.4 घंटे/सप्ताह
  • यूएई: 50.9 घंटे/सप्ताह
  • बांग्लादेश: 46.9 घंटे/सप्ताह

डेनमार्क जैसे देशों में प्रति घंटे 75 डॉलर का मेहनताना मिलता है, जबकि मेक्सिको में यह केवल 20 डॉलर है। इससे स्पष्ट है कि काम के घंटे कम होने के बावजूद उत्पादकता और भुगतान बेहतर हो सकता है।

निष्कर्ष: सप्ताह में काम के घंटे कम करने से न केवल कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ती है, बल्कि यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। भारत जैसे देश में कार्य संस्कृति को पुनः निर्धारित करने की आवश्यकता है, ताकि कर्मचारियों और अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ हो सके।


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