काम के घंटों पर बहस तेज: गुणवत्ता बनाम समय
आनंद महिंद्रा: गुणवत्ता मायने रखती है, घंटे नहीं
नई दिल्ली। महिंद्रा समूह के प्रमुख आनंद महिंद्रा ने कहा कि काम की गुणवत्ता घंटे से ज्यादा अहम है। “आप 10 घंटे में भी दुनिया बदल सकते हैं।” उन्होंने विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग 2025 में कहा कि वर्क-लाइफ बैलेंस पर बहस गलत दिशा में जा रही है।
महिंद्रा ने कहा, “यह बहस 40, 48, 70 या 90 घंटे के बजाय गुणवत्ता पर होनी चाहिए। हमें सही निर्णय लेने के लिए कला और संस्कृति का अध्ययन करना चाहिए। अगर आप दोस्तों और परिवार के साथ समय नहीं बिता रहे हैं, तो सही इनपुट नहीं ला सकते।”
“मुझसे पूछो कि मेरे काम की गुणवत्ता क्या है, न कि मैं कितने घंटे काम करता हूं।”
राधिका गुप्ता: 100 घंटे काम करके दुखी थी
एडलवाइस म्यूचुअल फंड की सीईओ राधिका गुप्ता ने अपने शुरुआती करियर की कठिनाइयों को साझा किया। उन्होंने कहा, “पहले प्रोजेक्ट में चार महीनों तक हर हफ्ते 100 घंटे काम किया। मैं 90% समय दुखी रहती थी। ऑफिस के बाथरूम में रोती और दो बार अस्पताल में भर्ती हुई।”
उन्होंने जोर दिया कि लंबे समय तक काम करना हमेशा प्रोडक्टिव नहीं होता। “यह कहानी मेरे जैसे कई अन्य लोगों की भी है।”
रितेश अग्रवाल: हर किसी का काम करने का अपना तरीका
ओयो के सीईओ रितेश अग्रवाल ने कहा कि काम के लिए सही दृष्टिकोण यह है कि लोग पूरे मन से काम करें। उन्होंने कहा, “कुछ लोग दिन में चार घंटे में प्रोडक्टिव हो सकते हैं, जबकि दूसरों को ज्यादा समय लग सकता है। हर किसी का अपना तरीका होता है।”
एसएन सुब्रमण्यम: 90 घंटे काम की वकालत
एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यम ने हाल ही में 90 घंटे काम कराने की वकालत की। उन्होंने कहा, “रविवार को भी काम कराया जा सकता है। घर पर बैठकर पत्नी को निहारने से क्या होगा?”
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके सालाना 51 करोड़ रुपये के वेतन और कर्मचारियों के योगदान पर बहस छिड़ गई।
गौतम अदाणी: संतुलन जरूरी है
अदाणी समूह के प्रमुख गौतम अदाणी ने कहा, “आपका वर्क-लाइफ बैलेंस मेरे ऊपर थोपा नहीं जा सकता। संतुलन जरूरी है। यदि आप 8 घंटे घर पर बिताते हैं, तो पत्नी भी भाग सकती है।”