उच्च शिक्षण संस्थानों में एनईपी के अमल को परखेगा यूजीसी








उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए एनईपी का सख्त अमल

उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सख्त अमल

ढुलमुल रवैये पर यूजीसी की सख्ती

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के कार्यान्वयन में सुस्ती दिखाने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को
अब इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने स्पष्ट किया है कि इसका असर
संस्थानों की रैंकिंग और उन्हें मिलने वाली वित्तीय मदद पर पड़ेगा।
यूजीसी ने नई नीति के अमल को परखने के लिए 49 बिंदुओं पर आधारित मसौदा जारी किया है।

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नीति के अमल को परखने के प्रमुख बिंदु

  • संस्थान में शिक्षकों के 75% स्थायी पद भरे हैं या नहीं?
  • शिक्षक-छात्र अनुपात का पालन हो रहा है या नहीं?
  • क्या प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के तहत पद भरे गए हैं?
  • क्या संस्थान ने क्रेडिट फ्रेमवर्क लागू किया है?
  • क्या कभी भी दाखिला लेने और छोड़ने की व्यवस्था लागू की गई है?
  • उद्योगों के साथ इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम की शुरुआत की गई है या नहीं?
  • क्या संस्थान ने एनईपी सारथी की नियुक्ति की है?

रैंकिंग और वित्तीय मदद पर प्रभाव

यूजीसी ने चेतावनी दी है कि नई शिक्षा नीति को लागू न करने वाले संस्थानों को
राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (नैक) की रैंकिंग में नुकसान होगा।
साथ ही, उन्हें दी जाने वाली वित्तीय मदद में कटौती हो सकती है या उन्हें प्राथमिकता सूची से बाहर रखा जा सकता है।

संस्थानों से सुझाव मांगे गए

मसौदे पर सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से 30 दिनों के भीतर सुझाव मांगे गए हैं।
यह जानकारी 30 बिंदुओं पर सभी संस्थानों के लिए, 13 बिंदुओं पर
विश्वविद्यालय और स्वायत्त कॉलेजों के लिए, तथा 6 बिंदुओं पर केवल विश्वविद्यालयों के लिए मांगी गई है।
सुझावों के बाद मसौदे को अंतिम रूप दिया जाएगा।

निष्कर्ष: नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रभावी कार्यान्वयन केवल शिक्षा के स्तर को सुधारने का प्रयास नहीं है,
बल्कि यह उच्च शिक्षण संस्थानों की जवाबदेही और गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में भी एक कदम है।


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