प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक राजगोपाल चिदंबरम का निधन
राजगोपाल चिदंबरम: परमाणु शक्ति के सूत्रधार
प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक राजगोपाल चिदंबरम का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के अनुसार, उन्होंने शनिवार तड़के तीन बजकर बीस मिनट पर
मुंबई के जसलोक अस्पताल में अंतिम सांस ली। देश के परमाणु कार्यक्रम को मजबूती देने में
उनकी भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
परमाणु परीक्षणों में अहम भूमिका
राजगोपाल चिदंबरम ने भारत के 1974 और 1998 के परमाणु परीक्षणों
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 1998 में पोखरण-2 (ऑपरेशन शक्ति) की टीम के
नेतृत्वकर्ता थे। 11 और 13 मई 1998 को हुए पांच परमाणु परीक्षणों में
थर्मो न्यूक्लियर डिवाइस का भी परीक्षण हुआ, जिसे न्यूट्रॉन बम के नाम से जाना जाता है।
उनके प्रयासों ने भारत को परमाणु शक्ति के रूप में वैश्विक मान्यता दिलाई।
गांवों को तकनीकी से जोड़ने का कार्य
चिदंबरम ने नैनो इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में कई कार्य किए। उन्होंने
नेशनल नॉलेज नेटवर्क और रूरल टेक्नोलॉजी एक्शन ग्रुप (रुटैग) की स्थापना
कर गांवों को तकनीकी विकास से जोड़ा। उनका यह प्रयास ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में
एक बड़ा कदम था।
छह दशक की देश सेवा
चिदंबरम ने छह दशकों तक भारत की सेवा की। वे 1990 से 1993 तक भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर
के निदेशक रहे और परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन के रूप में कार्य किया। 1994-95 में वे
इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के चेयरमैन भी रहे। सेवानिवृत्ति के बाद, 2001 से
2018 तक उन्होंने भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में सेवाएं दीं।
सम्मान और उपलब्धियां
चिदंबरम को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें वर्ष 1975 में
पद्मश्री और वर्ष 1999 में पद्मविभूषण से सम्मानित
किया गया। कई यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा।
उनका जन्म मद्रास में हुआ था और उन्होंने बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से
1962 में पीएचडी पूरी की।
नेताओं और वैज्ञानिकों ने जताया शोक
“देश को परमाणु क्षेत्र में नई ऊंचाई पर ले जाने में उनका योगदान अद्वितीय था।
उनकी उपलब्धियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।”
– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री“राजगोपाल चिदंबरम का निधन अपूरणीय क्षति है। उनकी रणनीतिक सोच और कार्य को हमेशा याद रखा जाएगा।”
– जितेंद्र सिंह, केंद्रीय मंत्री