शव के साथ दुष्कर्म बलात्कार नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दी कानून में बदलाव की जरूरत पर जोर

शव के साथ दुष्कर्म: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दी कानून में बदलाव की जरूरत पर जोर

रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक फैसले में शव के साथ दुष्कर्म को सबसे जघन्य अपराध करार दिया है। हालांकि, भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत इसे बलात्कार के दायरे में नहीं माना जाता है। हाईकोर्ट ने इस कानूनी सीमा को चिन्हित करते हुए कानून में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया है।

केस की पृष्ठभूमि

मामला नौ वर्षीय दलित लड़की से जुड़ा है, जिसका 18 नवंबर 2018 को बलात्कार कर हत्या कर दी गई थी। सितंबर 2023 में ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोपी नितिन यादव को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

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दूसरे आरोपी नीलकंठ ने शव को छिपाने में मदद की थी। उसे सबूतों से छेड़छाड़ के लिए सात साल की जेल की सजा दी गई। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने नीलकंठ को दुष्कर्म के आरोप से यह कहते हुए बरी कर दिया कि लड़की की मौत हो चुकी थी।

हाईकोर्ट का निर्णय

लड़की की मां ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की पीठ ने की।

हाईकोर्ट ने कहा:

  • शव के साथ दुष्कर्म भयावह अपराध है।
  • हालांकि, भारतीय दंड संहिता के तहत इसे बलात्कार नहीं माना जाता है।
  • निचली अदालत के निष्कर्षों में कोई त्रुटि नहीं पाई गई।

कानून की सीमा

हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की सीमाओं का जिक्र करते हुए कहा कि मौजूदा कानून शव के साथ दुष्कर्म को बलात्कार के रूप में परिभाषित नहीं करता। अदालत ने इस कानूनी स्थिति को सुधारने के लिए संसद और नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित किया।

मां की अपील खारिज

हाईकोर्ट ने कहा कि जहां तक पीड़िता की मां की अपील का सवाल है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि नीलकंठ का अपराध सबसे जघन्य है। लेकिन, कानूनी प्रावधानों के तहत उसे दुष्कर्म के आरोप में दोषी ठहराना संभव नहीं है।

भविष्य के लिए संकेत

हाईकोर्ट के इस फैसले ने कानूनी ढांचे में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है। अदालत ने कहा कि कानून को उन अपराधों को शामिल करने के लिए अद्यतन किया जाना चाहिए, जो समाज की नैतिकता और न्याय की भावना का उल्लंघन करते हैं।

निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के इस फैसले ने समाज में कानूनी और नैतिक बहस को जन्म दिया है। यह घटना यह सवाल उठाती है कि क्या मौजूदा कानून समाज में सभी प्रकार के अपराधों के लिए पर्याप्त है, और क्या इसे अधिक समावेशी बनाने की आवश्यकता है।

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