शिक्षकों की सेवा सुरक्षा के लिए धारा 18 और 21 को लागू करने की मांग
लखनऊ। अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के तदर्थ प्रधानाचार्य और शिक्षकों की सेवा सुरक्षा को लेकर उठ रहे असंतोष के बीच शिक्षा सेवा चयन आयोग ने शासन को पत्र भेजा है। इसमें धारा 18 और 21 को शिक्षा सेवा चयन आयोग अधिनियम में शामिल करने की मांग की गई है।
मुद्दे की पृष्ठभूमि
चयन बोर्ड अधिनियम, 1982 में धारा 18 और धारा 21 शिक्षकों और तदर्थ प्रधानाचार्यों की सेवा सुरक्षा सुनिश्चित करती थीं। इन धाराओं के तहत:
- धारा 18: प्रबंधतंत्र को किसी शिक्षक के विरुद्ध निलंबन, बर्खास्तगी या अन्य कार्रवाई करने से पहले चयन बोर्ड से अनुमति लेनी पड़ती थी।
- धारा 21: शिक्षकों की सेवा संबंधी प्रावधान निर्धारित करती थी, जिससे उनके अधिकारों और सेवाओं की सुरक्षा होती थी।
हालांकि, शिक्षा सेवा चयन आयोग अधिनियम, 2023 में इन धाराओं को शामिल नहीं किया गया है, जिससे शिक्षकों और प्रधानाचार्यों में असुरक्षा की भावना है।
शिक्षक संगठनों का विरोध
इस स्थिति को लेकर प्रधानाचार्य परिषद और माध्यमिक शिक्षक संघ ने विरोध जताया है। इन संगठनों का कहना है कि:
- धारा 18 और 21 को हटाने से शिक्षकों की सेवा सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- प्रबंधतंत्र को अब बिना अनुमति शिक्षकों पर कार्रवाई का अधिकार मिल जाएगा, जो शिक्षकों के हितों के खिलाफ है।
शिक्षक संघों ने मांग की है कि चयन बोर्ड अधिनियम, 1982 की इन धाराओं को नए अधिनियम में पुनः शामिल किया जाए।
शिक्षा सेवा चयन आयोग का रुख
शिक्षा सेवा चयन आयोग के सचिव ने इस मांग को लेकर प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा को पत्र भेजा है। इस पत्र में:
- धारा 18 और 21 की महत्ता को विस्तार से समझाया गया है।
- शिक्षकों और प्रधानाचार्यों की सेवा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन धाराओं को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
शिक्षकों और संगठनों की अपील
प्रधानाचार्य परिषद और शिक्षक संघों का कहना है कि यदि इन धाराओं को लागू नहीं किया गया, तो:
- शिक्षकों की सेवा पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा।
- प्रबंधतंत्र को अनुचित कार्रवाई का अधिकार मिल जाएगा, जिससे शिक्षा व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
शिक्षक संगठनों ने शासन से इस मामले पर शीघ्र निर्णय लेने की अपील की है।
निष्कर्ष
धारा 18 और 21 को शिक्षा सेवा चयन आयोग अधिनियम में शामिल करना शिक्षकों और प्रधानाचार्यों की सेवा सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण कदम होगा। यह कदम न केवल शिक्षकों के हितों की रक्षा करेगा, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की निष्पक्षता और पारदर्शिता को भी बनाए रखेगा।