**इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: गोद लेने के लिए पत्नी की सहमति अनिवार्य**
**प्रयागराज:** इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत गोद लेने की प्रक्रिया में पत्नी की पूर्व सहमति को अनिवार्य करार दिया है। न्यायमूर्ति **सौरभ श्याम शमशेरी** ने यह आदेश देते हुए 41 साल पुराने कानूनी विवाद का अंत किया।
### **गोद लेने की प्रक्रिया में वैधानिक खामियां**
याचिकाकर्ता **अशोक कुमार** ने 12 मई 1967 को दर्ज गोदनामा के आधार पर गोद लेने के अधिकार की अस्वीकृति को चुनौती दी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि गोद लेने की प्रक्रिया में कई गंभीर खामियां थीं, जैसे:
1. **गोद लेने वाली मां की सहमति का अभाव।**
2. **गोदनामा पर हस्ताक्षर नहीं होना।**
यह स्पष्ट रूप से **हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956** की धारा 7 और 11 का उल्लंघन है।
### **पत्नी की सहमति का महत्व**
न्यायालय ने कहा:
> “जो व्यक्ति किसी बच्चे को गोद लेता है, उसे अपनी पत्नी की सहमति लेना अनिवार्य है। यह वैधता की कानूनी शर्त है।”
पत्नी की भागीदारी और सहमति के बिना गोद लेना कानूनन वैध नहीं माना जा सकता।
### **चार दशक पुराने विवाद पर खेद**
कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए इस मामले के चार दशकों से अधिक समय तक लंबित रहने पर खेद जताया। न्यायमूर्ति ने वादियों से माफी मांगते हुए कहा कि यह देरी न्यायिक प्रक्रिया की एक गंभीर कमी को दर्शाती है।
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### **मुवक्किल की सहमति के बिना अधिवक्ता केस वापस नहीं ले सकते: हाईकोर्ट**
हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि **मुवक्किल की पूर्व सहमति के बिना अधिवक्ता को किसी केस को वापस लेने का अधिकार नहीं है।**
### **मामले का विवरण**
याचिकाकर्ता **भानुप्रताप** ने अधिवक्ता **फातिमा खातून** के माध्यम से अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की थी। लेकिन बहस के दौरान अधिवक्ता ने यह कहते हुए केस वापस ले लिया कि याचिकाकर्ता नियमित जमानत अर्जी दाखिल करेगा।
न्यायमूर्ति **विक्रम डी चौहान** ने इसे गंभीर कदाचार करार दिया और कहा:
> “अधिवक्ता को मुवक्किल की पूर्व सहमति के बिना ऐसा कोई निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।”
### **न्यायालय का कड़ा रुख**
न्यायालय ने महानिबंधक को निर्देश दिया कि अधिवक्ता **फातिमा खातून** को नोटिस जारी कर पूछा जाए कि उन्होंने अग्रिम जमानत अर्जी कैसे वापस ली।
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### **निष्कर्ष**
इन दोनों फैसलों से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और कानून के अनुपालन पर जोर दिया है।
1. **गोद लेने के मामले में**, पत्नी की सहमति की अनिवार्यता व्यक्तिगत अधिकारों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के संतुलन को दर्शाती है।
2. **अधिवक्ताओं के आचरण पर फैसला**, मुवक्किलों के अधिकारों की रक्षा और न्याय प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
**यह न्यायालय का संदेश है कि कानून और नैतिकता का पालन हर स्तर पर होना चाहिए।**