**माध्यमिक शिक्षकों का निदेशालय के बाहर प्रदर्शन: सेवा सुरक्षा, पदोन्नति और पेंशन की उठाई मांग**
**लखनऊ:** बुधवार को उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ ने अपनी बहुप्रतीक्षित मांगों के समर्थन में एक बड़ा प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने पार्क रोड स्थित माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के शिविर कार्यालय का घेराव किया। यह प्रदर्शन सुबह से शुरू हुआ और शाम तक जारी रहा।
### **सचिवालय घेराव की कोशिश और पुलिस की कार्रवाई**
शाम करीब चार बजे, शिक्षकों ने प्रदर्शन को सचिवालय की ओर ले जाने का प्रयास किया। इस दौरान पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में ही रोक दिया, जिससे दोनों पक्षों के बीच नोकझोंक हुई।
शिक्षक पहले निदेशालय के सामने शांतिपूर्ण धरना दे रहे थे। जैसे ही माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष **सुरेश कुमार त्रिपाठी** ने शिक्षकों को सचिवालय की ओर बढ़ने का निर्देश दिया, पुलिस ने सतर्कता बढ़ा दी।
### **शिक्षकों की प्रमुख मांगें**
प्रदर्शन में शामिल शिक्षकों ने **सेवा सुरक्षा**, **पदोन्नति**, और **पेंशन** से जुड़ी अपनी मांगों को जोर-शोर से उठाया।
प्रादेशिक उपाध्यक्ष और प्रवक्ता **डॉ. आरपी मिश्रा** ने कहा:
> “चयन बोर्ड अधिनियम की धारा 21, जो हमारी सेवा सुरक्षा से जुड़ी है, उसे तत्काल बहाल किया जाए।”
उन्होंने यह भी कहा कि **धारा 12** (शिक्षकों की पदोन्नति) और **धारा 18** (प्रधानाचार्यों की तदर्थ पदोन्नति) को लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा, तदर्थ शिक्षकों के नियमितीकरण और **निःशुल्क चिकित्सा सुविधा** की भी मांग उठाई गई।
### **पूर्व अध्यक्ष की प्रेरणा**
प्रदर्शन के दौरान पूर्व अध्यक्ष **ओम प्रकाश शर्मा** का जिक्र करते हुए संघ ने कहा कि उन्होंने पहले भी शिक्षकों के हित में कई संघर्ष किए थे।
> “हम भी सेवा सुरक्षा से संबंधित प्रावधानों को बहाल कराएंगे।”
### **शिक्षक एमएलसी का समर्थन**
शिक्षक एमएलसी **ध्रुव कुमार त्रिपाठी** ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा:
> “एक वर्ष बीत जाने के बावजूद सेवा सुरक्षा संबंधी धारा 21 बहाल नहीं की गई। अगर अब भी हमारी मांगों को अनदेखा किया गया, तो संघर्ष और तेज होगा।”
### **आंदोलन का भविष्य**
यह प्रदर्शन सरकार के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि शिक्षकों की मांगें अब टाली नहीं जा सकतीं। यदि उनकी समस्याओं का शीघ्र समाधान नहीं किया गया, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।
**निष्कर्ष:**
शिक्षकों का यह आंदोलन न केवल उनके अधिकारों की बहाली के लिए है, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षकों की समस्याओं को गंभीरता से सुने और समाधान निकाले।
