झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू में शुक्रवार रात आग के बाद पीड़ितों ने सरकार और प्रशासन के रवैये पर सवाल खड़े किए हैं। बच्चा खोने वाली एक मां ने कहा, ‘डॉक्टर-नसों ने बच्चों को बचाने की कोशिश नहीं की। वे पीछे वाले गेट से भाग गए। बच्चा हमारे पास होता तो हम खुद जल जाते, लेकिन बच्चा बचा लेते।’ वहीं कृपाराम जैसे लोग भी थे, जो जान पर खेलकर 7 नवजातों को बचा लाए, लेकिन खुद का बच्चा नहीं बचा पाए। इस हादसे में 10 नवजातों की मौत हो गई थी, जबकि 39 नवजात बचा लिए गए थे। इनमें 16 का इलाज चल रहा है।
इस बीच, यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक शनिवार सुबह घटनास्थल पहुंचते, इससे पहले अस्पताल के बाहर उनके सत्कार में कर्मचारी सड़क पर चूने की लाइन डालते दिखे। सफाई भी करवाई। पाठक ने दावा किया कि फरवरी में फायर सेफ्टी ऑडिट और जून में मॉक ड्रिल की गई थी। हालांकि अस्पताल में एक्सपायर हो चुके आग बुझाने वाले यंत्र रखे मिले हैं। वहीं एनआईसीयू में लगा सेफ्टी अलार्म भी धुआं उठने के बाद नहीं बजा। इस कारण बचाव कार्य देरी से शुरू हो सका।
15 साल में 660 हादसे; सबसे बड़ा कारण- शॉर्ट सर्किट
देश के अस्पतालों में 15 सालों में 660 अग्निकांड हुए। इनमें 200 नवजातों- लोगों की जान गई। पिछले 50 सालों में आग के कारणों में शॉर्ट सर्किट प्रमुख है। रिपोर्ट के मुताबिक, झांसी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर में शॉर्ट सर्किट से आग लगी। सवाल उठता है कि वहां नेशनल नियोनेटल फोरम (एनएनएफ) की गाइडलाइन का पालन किया जा रहा था या नहीं?
जांच कमेटी बनाई, 7 दिन में रिपोर्ट देगी
यूपी सरकार ने जांच के लिए 4 सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी बनाई है, जो 7 दिन में रिपोर्ट देगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन स्तरीय जांच के आदेश भी दिए हैं। पहली जांच, शासन स्तर पर स्वास्थ्य विभाग करेगा। इसमें फायर ब्रिगेड के अधिकारी भी शामिल होंगे। दूसरी जांच जिला स्तर पर प्रशासन कराएगा। तीसरी मजिस्ट्रियल जांच मंकर कराई जाएगी।

